मैं अमृत-काल में हूँ (कविता)
इसलिए रसोई गैस
ग्यारह सौ रुपए हैं
हाँ मैं अमृत काल में हूँ
इसलिए दो सौ रूपये सरसों तेल में भी
अमृत वर्षा की बौछार है
हाँ मैं अमृत-काल में हूं
'रागदरबारी' व्यंग रचना
पढ़ी हमने जरूर
लेकिन साक्षात्
सीबीआई-ईडी-नेता और तथाकथित पत्रकार
के नाट्य रोज देख रहें हैं...
हाँ मैं अमृत-काल में हूँ
रोज रोज नये लोकतंत्र
कठपुतली का नाच जैसे
गाजर मूली की तरह
बिकने और खरीदने का
दौड़ चला है
ईमानदारी गई तेल लेने
यहाँ तो आत्मा पे भी
जंजीर लगी है...
मैं अमृत-काल में हूँ
किसी को इंसाफ मिले या ना मिले
हत्यारे को सजा मिले या रिहाई
यह परवाह मत करो
वो तो अपना देख लेंगे
तुम अपनी बात करो
तुम्हारी आत्मा पे ताला
लगा दिया गया है जो
उसकी चाभी ढूंढ सकोगे कभी
ऐसी हिम्मत पा सकोगे कभी....
आंखों के सामने किसी की संतान को
पटक-पटक कर मार दिया जाए
इसकी परवाह भी तुम मत करो
तुम अपनी सोचो
तुम्हारी आत्मा रोज पटकी जा रही
यह सवाल ढूंढना अमृत-काल में कभी.....
हां मैं अमृत-काल में हूँ
खबरिया चैनल रोज सुनकर
अपना ज्ञान बढ़ाते हैं
धर्म के नाम पर रोज हमें जो डराते हैं
हिंदू-मुस्लिम का पाठ हमें पढ़ाते हैं
इसे देख हम अपने चश्मे का नंबर रोज बढ़ाते हैं
अंधे-गूंगे-बहरे बन हम रोज खुश हो जाते हैं
बेरोजगारी-महंगाई-स्वास्थ्य-शिक्षा गई भाड़ में
अमृत वर्षा की बौछार है
और किसी चीज की क्या दरकार है...
हाँ मैं अमृत-काल में हूँ
सब धर्म एक समान है
समझ कर बड़े हुए हम
हिन्दू धर्म को मानते हैं
हिन्दू धर्म से गौरवान्वित हैं हम
हनुमान जी हमारे आराध्य हैं
हमारी रूह को भी पता है
पर हर धर्म की अच्छी बातें
हमें अच्छी भी लगती है
पर शुक्र है.....
हे अल्लाह... हे भगवान
हमारा नाम खान या खातून नहीं
क्यूँकि हम अमृतकाल में हैं।
~रश्मि
2 Comments
अमृत काल ही है। भ्रम में घिरी है अस्तित्व। व्यंग्यात्मक कविता आइना तो है, पर चेहरा देखने आने वालों की तादाद कम हो रही है। अमृत काल की भ्रम में जी रहें है सभी। कवि बस जगा है। अत्यंत प्रासंगिक विषय का चुनाव किया हैं आपने।
ReplyDeleteसुमित लाल चौधरी - ग्रिनफिल्ड सीटी।
बहुत बहुत शुक्रिया 🙏
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