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हीरामन का चरित्र चित्रण (तीसरी कसम)


 हीरामन का चरित्र चित्रण  ( तीसरी कसम )




फणीश्वरनाथ रेणु के आंचलिक उपन्यास 'तीसरी कसम' का नायक हीरामन एक ग्रामीण युवक का सजीव चित्रण है। ग्रामीण युवा का सरल सहज निष्कपट रूप का दर्शन हीरामन में दिखाई देता है।

 हीरामन चालीस साल का एक हट्टा - कट्ठा नवयुवक है। वह एक गाड़ीवान है जो बैल गाड़ी चलाता है और पिछले बीस साल से गाड़ी हाँकने का कार्य करता है।
 हीरामन की दिलेरी, सचेतना, आत्मीयता ईमानदारी, सरलता, सज्जनता और करुणा उसके अंदर बैठे इंसान को प्रकट करता है।

 हीरामन बहुत बहादुर है वह सीमा के उस पार मोरक राज नेपाल से धान और लकड़ी ढो चुका है कंट्रोल के जमाने में चोर बाजारी का माल उस पार पहुंचाता है। वह कर्मठ गाड़ीवान है संकट का सामना करना जानता है इसलिए फारबिसगंज का हर चोर व्यापारी उसे पक्का गाड़ीवान मानता है।

 हीरामन में इंसान और पशु दोनों के प्रति प्रेम और गहरी आत्मीयता दिखाई देती है उसकी मानवीयता बैलों के साथ उसके व्यवहार में दिखती है। वह जब चोर बाजारी का काम करता है तो एक बार चोरी का सामान ले जाने के क्रम में पुलिस द्वारा पकड़ा गया। किसी तरह तरकीब लगाकर कि वह बच पाया। इसी तरह एक बार गाड़ी पर बांस ले जाने के क्रम में मुसीबत हो गई और हीरामन की बैलगाड़ी एक घोड़ा गाड़ी से जा टकराई जिसके कारण भी मुसीबत हो गई।
इसलिए उसे चिंता होती है यदि वह जेल चला गया तो उसके बैल भूखे रह जाएंगे या आधेदारी पर बैलों को ना जोतना पड़े इससे रुपए कम मिलते हैं और इतने रुपयों से बैलों का सही देखभाल नहीं होती है।
 इसी वाक्ये के बाद उसने दो कसम खाई कि एक चोर बाजारी का माल नहीं लादेंगे और दूसरी बांस।चाहे बांस के लिए पचास रूपये ही क्यों ना कोई भी दे। यह उसकी सरलता और भलमानसता को दर्शाती है।

 हीरामन बहुत ही सीधा और निश्चल युवक है। चंपानगर मेले में इस बार हीरामन की गाड़ी पर एक जनानी सवारी है जो नौटंकी कंपनी की नृतांगना है। उस वक्त हीरामन को कैसा महसूस होता है इन पंक्तियों से पता चलता है -

"........... बाघगाड़ी की गाड़ीवानी की है हिरामन ने। कभी ऐसी गुदगुदी नहीं लगी पीठ में। आज रह-रहकर उसकी गाड़ी में चंपा के फूल महक उठता है " पीठ में गुदगुदी लगने पर वह अंगोछे से पीछे झाड़ लेता है।

 गंध ने उसे बांध लिया है "औरत है या चंपा का फूल" उसी समय संयोग से गड्ढे के कारण गाड़ी हिचकोला खा गयी। पीछे सेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेे हल्की 'सिस' की आवाज ने उत्तेजित किया तो उसने दाहिने बैल को दुआली से पीट दिया। ' आह! मारो मत !"
 अनदेखी औरत की आवाज में हीरामन को अचरज में डाल दिया। बच्चों की बोली जैसे महीने " फेनू गिलासी बोली " उसकी जिज्ञासा और व्याकुलता बढ़ गई " एक तो पीठ में गुदगुदी हो रही है " दूसरे रह-रहकर चंपा का फूल खिल जाता है। अपनी दो कसमों के पूर्व के अनुभवों से सचेत करते हैं। भगवान जाने क्या लिखा है इस बार उसकी किस्मत में। हीरामन को सब कुछ रहस्मय अजुगत - अजुगत लग रहा था। कहीं डाकिन पिशाचिनी तो नहीं, कि सवारी ने करवट ली और उसके पूरे मुखड़े पर चांदनी पड़ी तो हीरामन चीखते - चीखते रह गया - अरे बाप! ई तो परी है। "

 यह सारे प्रसंग हीरामन की चारित्रिक विशेषता को दर्शाते हैं कि वह कितना सीधा साधा भोला भाला निश्चल निष्कपट इंसान है।
 हीरामन का व्यक्तित्व उसके नाम की तरह हीरा जैसा है। चालीस साल का हट्टा - कट्टा काला -कलूटा यह देहाती नौजवान अपनी गाड़ी और अपने बैलों के सिवाय दुनिया की किसी और बात में विशेष दिलचस्पी नहीं लेता।
घर में बड़ा भाई है खेती करता है। बाल बच्चे वाला आदमी है। हीरामन भाई से बढ़कर भाभी की इज्जत करता है। वह भाभी से डरता भी है।हीरामन की भी शादी हुई थी बचपन में ही गौने के पहले ही दुल्हन मर गई। हीरामन को अपनी दुल्हन का चेहरा याद नहीं है दूसरी शादी ना करने के अनेक कारण हैं। भाभी की जिद कुंवारी लड़की से हीरामन की शादी करवाएगी कुमारी का मतलब पांच - सात साल की लड़की। भाभी उसके तीन सत करके बैठी है। हिरामन ने भी तय कर लिया शादी नहीं करेगा।


 हीरामन इतना निष्कपट है कि वह सोचता है....... ब्याह करके फिर गाड़ीबानी क्या करेगा कोई!
और सब कुछ छूट जाए, गाड़ीवान नहीं छोड़ सकता।
 हीरामन इतना सरल है कि जब हीराबाई से हिरामन ने पूछा - आपका घर कौन जिल्ला  में पड़ता है?  कानपुर नाम सुनते ही उसकी हंसी छुट्टी.........  हीरामन हंसते समय सिर नीचा कर लेता है। हंसी बंद होने पर उसने कहा - " वाह रे कानपुर !  तब तो नाकपुर भी होगा? और जब हीराबाई ने कहा नाकपुर भी है तो वह हंसते-हंसते दुहरा हो गया।

 इस प्रसंग में हीरामन की सरलता देख पर बरबस होठों पर हंसी आ जाती है।
 हीरामन होशियार भी है कुहासा छंटेते ही अपनी चादर से टप्पर में परदा कर देता है ताकि हीराबाई को सामने से धुप ना लगे।
 सामने से आती हुई गाड़ी को दूर से ही देख कर वह सतर्क हो जाता है। राह काटते हुए गाड़ी वालों ने जब पूछा - " मेला टूट रहा है क्या भाई ? " हीरामन साफ झूठ बोल जाता है। वह मेले की बात नहीं जानता। उसकी गाड़ी पर विदागी है। और वह ना जाने किस गांव का नाम बता देता है।
 हीराबाई पूछती है छतरपुर - पचीरा कहां है ? कहीं हो, यह जानकर आप क्या करिएगा ?  हीरामन अपनी चतुराई पर मन ही मन हंसता है।

 हीरामन  के चरित्र में आत्मीयता भी है। वह हीराबाई के लिए पास के गांव से जलपान के लिए दही - चुरा - चीनी ले आया है। " एक हाथ में मिट्टी के नए बर्तन में दही, केले के पत्ते। दूसरे हाथ में बाल्टी भर पानी। आंखों में आत्मीयता पूर्ण अनुरोध। "

 हीरामन महुआ घटवारिन की कथा गीतों के रूप में आग्रह करने पर हीराबाई के लिए सुनाता है। हीराबाई के कहने पर " तुम तो उस्ताद हो मीता। "  ' इस्स ' उसके मुख से बच्चों की तरफ फूट पड़ते हैं जब - तब।

 हीरामन और हीराबाई के नामों में समानता है। हीराबाई हीरामन को मीता कहती है। हीराबाई नौटंकी की पातुरिया बेहद रूपवती और हीरामन चालीस साल का काला-कलुटा। लेकिन हीराबाई परख लेती है कि हीरामन सचमुच हीरा है।
नाम के अलावा एक और भी समानता है दोनों में दोनों प्रेम की दुनिया से बहुत दूर है और इसकी कोई संभावना ही नहीं है। प्रेम की दृष्टि से हीरामन का जीवन सूखा है।

 हीरामन जैसा काला - कलूटा गाड़ीवान समान्यत प्रेम का विषय नहीं बन सकता - पिछले सौंदर्य बोध के कारण क्योंकि शोषक और बाजारू सौंदर्य- बोध ने, हमें ऐसा विश्वास दिला दिया है। लेकिन सब तरह से साधारण हीरामन जैसा व्यक्ति हृदय से और आचरण से कितना सुंदर है इसे पहचानने की कला सिर्फ हीराबाई के पास हो सकती है जो खुद भी अनपहचानी अनात्मीय समाज क्षेत्र में फालतू और निरर्थक है।

 हीराबाई की सारी सुंदरता, सारी कला उसे एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं दे सकती जिसे वह अपना कह सके और जो उसे अपना कह सके। यह हीराबाई की भुक्तभोगी दृष्टि की निर्मलता है कि वह परख लेती है  ' हीरामन सचमुच हीरा है ' उसे हीरामन से आत्मीयता मिल सकती है।

 हिरामन ने भी ऐसी आत्मीयता नहीं पाई है।     उसे अपनी स्वर्गवासी पत्नी की याद तक नहीं। हिरामन के मन में हीराबाई को लेकर दांपत्य संबंध की इच्छा साफ तौर पर नहीं जगती। यह अद्भुत कलात्मक संगम है।  हीरामन के अवचेतन में जो है वह मन और शब्दों में स्पष्ट नहीं होता पर व्यवहार में वह प्रगट हो जाता है। दूसरे गाड़ीवान द्वारा पूछने पर कि मेला टूट रहा है भाई? तो हीरामन का या झूठ की वह मेले की बात नहीं जानता उसकी गाड़ी में भी ' विदागी ' है उसके अंतर्मन को झलका देता है।

 अंतर्मन का यह सच उस समय और स्पष्ट हो जाता है जब के तेगछियां गांव में बच्चे पर्देवाली गाड़ी को देखकर तालियां बजा बजाकर कहता है -
 " लाली लाली डोलिया मे रे दुल्हनिया "
 हीरामन की मन: स्थिति का वर्णन रेणु ने इस प्रकार किया है -
"  ऐसे कितने सपने देखे हैं उसने........ वह अपनी दुल्हन को लेकर लौट रहा है। हर गांव के बच्चे तालियां बजाकर गा रहे हैं। हर आंगन से झांक रही है औरतें। मर्द लोग पूछते हैं,  कहां की गाड़ी कहां जाएगी ? उसकी दुल्हन डोली का पर्दा सरका कर देखती है। और भी कितने सपने।....... "

 नौटंकी देखते हुए दर्शकों की हीराबाई पर फब्तियां उसे उत्तेजित, पीड़ित करती है। उसकी ग्रामीण सहजता और मनुष्यता उस समय भी उजागर होती है जब लोग हीराबाई को पातुरिया कहते हैं और वह क्रूद्ध एवं दुखी होता है।

जब हीराबाई जाने लगती है तो हीरामन को गर्म चादर के लिए रुपया देना चाहती है। हीरामन को रुपया लेना गँवारा नहीं।  हीराबाई के चले जाने पर  " दुनिया ही खाली हो गई मानो " का बोध उसे होता है  मेला उसे खोखला लगता है। वह अपने गांव की ओर रुख करता है। हिरामन के होंठ हिल रहे हैं शायद वह तीसरी कसम खा रहा है कंपनी की औरत की लदनी अब कभी नहीं।

 तीसरी कसम के पात्र हीरामन का ख्याल जब भी आता है। होठों पर फीकी मुस्कान, आंखों में नमी और दिल से आवाज आती है यह तो सचमुच का सच्चा हीरा है। जिसकी चमक कभी फीकी ना होगी।

( हिंदी विषय के छात्रों के लिए विशेष )

~रश्मि























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