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शिक्षा में आदर्शवाद - Idealism In Education

आदर्शवाद और शिक्षा
Idealism and Education 



 दर्शनशास्त्र की सबसे प्राचीन विचारधारा आदर्शवाद है। आदर्शवाद अंग्रेजी शब्द Idealism का हिंदी रूपांतर है जिसका अर्थ होता है - विचार
Idealism दो शब्दों से मिलकर बना है Idea और Ism, idea का अर्थ होता है विचार और ism का अर्थ होता है वाद। अर्थात Idealism  का अर्थ हुआ विचारवाद।
 आदर्शवाद आध्यात्मिकता पर अधिक बल देता है इस विचार के अनुसार मानसिक या अध्यात्मिकता कि शक्ति ही परम सत्ता है इसलिए आदर्शवादी को मनवादी या अध्यात्मवादी भी कहा जाता है।

 आदर्शवाद की परिभाषा
Definition of Idealism 

 जेम्स एस रॉस - आदर्शवाद केेेेेेेेेे अनेक और विविध रूप हैं लेकिन सब का सार यह है कि मन और आत्मा ही इस जगत का पदार्थ है और मानसिक स्वरूप सत्य है। 

 डी. एम. दत्ता - आदर्शवाद वह सिद्धांत है जो अंतिम सत्ता को आध्यात्मिक मानता है।

 हर्मन एच. हॉर्न - आदर्शवादी शिक्षा दर्शन मानव को वह स्वरूप प्रदान करता है जिससे वह अपने को मानसिक विश्व से अविभाज्य समझनेे लगे।

 आदर्शवादी ज्ञान और सत्य की विवेचना विवेकपूर्ण विधि से करते हैं। वे ब्रह्मांड में उन सिद्धांतों की खोज करते हैं जिनको सार्वभौमिक सत्य का रूप प्रदान किया जा सके आदर्शवादियों की मान्यता है ईश्वर मन या आत्मा - सत्य है।

 पश्चात आदर्शवादियों के विचारधारा के अनुसार आदर्शवाद के अनेक रूप हैं जैसे आत्मनिष्ठ, निरपेक्ष आदर्शवाद, अनेकवाद इत्यादि।
 भारतीय आदर्श विचारधारा के अनुसार आदर्शवाद के तीन रूप है अद्वेत, द्वेतवाद और अनेकवाद।

 आदर्शवाद के सिद्धांत
( principal of Idealism )
 आदर्शवाद के बहुत सारे सिद्धांत हैं जैसे -

 • आध्यात्मिक विचार ही सच्ची वास्तविकता है, इसलिए आध्यात्मिक जगत श्रेष्ठ है।

 •  केवल मानसिक जीवन ही जानने योग है।

 • मस्तिष्क जिस रूप में संसार को देखता है, वही     वास्तविक संसार है।

 • अंतर्दृष्टि ही ज्ञान का सर्वोच्च रूप है।

 • आत्मनिर्णय ही सच्चे जीवन का सार है।

 •  सच्ची वास्तविकता इंद्रियों द्वारा नहीं जानी जा सकती है।

 •  प्रकृति में जो दिखाई देता है वह सभी भ्रमपूर्ण है।

 •  भौतिक संसार वास्तविकता की अपूर्ण अभिव्यक्ति है।

 •  वाह्य संसार हमारे मस्तिष्क और आत्मा के द्वारा अंकित किया गया एक दृश्य मात्र है।

•  ईश्वर का संबंध मस्तिष्क से है वह दूसरों जीवो के बारे में ज्ञान उपलब्ध कराता है।

•  संसार मुख्यत्या केवल विचारों से निर्मित है।

•  आदर्शवादी 'सत्यम' 'शिवम' 'सुंदरम' को  शावश्त और सर्वव्यापी मानते हैं।

 
Idealism In Education -
शिक्षा में आदर्शवाद की प्रतिष्ठा प्लेटो, कॉमेनियन, पेस्टोलोजी,  फ्रोबेल, हरबर्ट आदि के द्वारा हुई है आदर्शवादी विचारधारा ने अनेक रूपों में शिक्षा जगत को प्रभावित किया है।


आदर्शवादी शिक्षा के उद्देश्य 
Idealistic Aims Of Education :

1. आत्मानुभूति के लिए शिक्षा -
 आदर्श वादियों के अनुसार जीवन का प्रमुख उद्देश्य आत्मा परमात्मा के चरम स्वरूप को जानना है इसी को आत्मानुभूति कहते हैं। खुद को जानना पहचानना, व्यक्तित्व का सर्वोत्तम विकास करना  और आत्मा की शक्ति को वास्तविक स्वरूप देना ही शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है।

जेनटाइल ने भी शिक्षा के उद्देश्यों में आत्मानुभूति को महत्वपूर्ण माना है।

 सुकरात के अनुसार - अपने आप को पहचानना या स्व की अनुभूति ही शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है।

 रॉस के अनुसार - 'आत्मा' को सर्वोत्तम शक्तियों का वास्तविक रूप देना है।

रस्क के अनुसार -  "शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व को ऊंचा उठाना गुण संपन्न करना है। "

2. आध्यात्मिक मूल्यों की प्राप्ति -  आदर्शवादी मानते हैं कि 'सत्यम' 'शिवम' 'सुंदरम' आध्यात्मिक मूल्य है। इसलिए बालक की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो इन में आध्यात्मिक मूल्यों की प्राप्ति में सहायक हो। बालक को मैं सद्गुणों का विकास करके उसे आध्यात्मिक मनुष्य बनाना ही शिक्षा का उद्देश्य होता है।

3. अपनी सभ्यता-संस्कृति का ज्ञान और विकास -
 हमारी सभ्यता और संस्कृति ही हमारी पहचान है और यह हमारे समाज की धरोहर है। सभ्यता और संस्कृति के विकास और समृद्धि में मानव का सक्रिय योगदान रहा है। इसका ज्ञान कराना इसकी रक्षा करना और इसका विकास कराना प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है। अतः हमारी शिक्षा का एक  प्रमुख उद्देश्य हमारी सभ्यता संस्कृति के ज्ञान को आगे बढ़ाना और उसका विकास करना भी जरूरी है। इसलिए बालकों को ऐसी शिक्षा देना बहुत आवश्यक है।

4. ऊंचे और पवित्र जीवन की प्राप्ति -
 फ्रोबेल के अनुसार - "शिक्षा का उद्देश्य भक्ति पूर्ण और कलंक रहित पवित्र जीवन की प्राप्ति है। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि जो मनुष्य को अच्छे और बुरे में अंतर समझने के योग बना सके।" आदर्श वादियों के अनुसार बालकों में शिक्षा का उद्देश्य ऐसा होना चाहिए कि संपूर्ण मानव जीवन में वह व्यक्ति  भक्ति पूर्ण और पवित्र जीवन की प्राप्ति कर सके और उसे अच्छे और बुरे में अंतर समझने की योग्यता उनमें आ सके।

5. अनेकता में एकता के दर्शन - आदर्श वादियों के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य ऐसा होना चाहिए की बालक शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत अनेकता में एकता को कायम रख सकने में सक्षम हो सके। इस एकता के दर्शन करना है ईश्वर के साथ साक्षात्कार करना है।

6. बुद्धि-विवेक शक्ति का विकास - आदर्शवादी शिक्षा का उद्देश्य प्रमुख रूप से आध्यात्मिक मूल्य 'सत्यम शिवम सुंदरम की' प्राप्ति के लिए बुद्धि और विवेक शक्ति विकास को आवश्यक माना गया है।
 आदर्शवादी के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य ऐसा होना चाहिए जिससे कि हम अपनी बुद्धि और विवेक का उपयोग करके आध्यात्मिक मूल्यों की प्राप्ति कर सके। इसलिए बालकों की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए कि उसकी बुद्धि और विवेक का विकास किया जा सके।

7.  चारित्रिक और नैतिक विकास - हरबर्ट ने नैतिक विकास को शिक्षा का मूल उद्देश्य माना है। उन्होंने कहा है कि इंद्रियों पर नियंत्रण करने पर मनुष्य में चारित्रिक दृढ़ता बढ़ती है और नैतिक विकास होता है इसलिए शिक्षा का उद्देश्य ऐसा हो जो बालक को को चारित्रिक और नैतिक विकास कर सके। इसलिए आदर्शवादी शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य  यह भी है कि बालकों के चरित्र का उत्तम विकास का किया जा सके। जिससे हमारी संस्कृति और नैतिक मूल्य का विकास हो सके।

 आदर्शवाद और  पाठ्यक्रम 
Idealism and Curriculum :

 आदर्शवादी दार्शनिकों के अनुसार शिक्षा में पाठ्यक्रम का निर्माण मनुष्य के विचारों और अनुभवों पर आधारित होनी चाहिए। चुंकि आदर्शवादी 'सत्यम शिवम सुंदरम' और धर्म के पक्षपाती हैं और उन्हीं से संबंधित विषयों को पाठ्यक्रम में संभावित करना चाहते हैं फिर भी उन्होंने पाठ्यक्रम में मानवीय और वैज्ञानिक विषयों को भी शामिल करने  पर बल दिया है।

आदर्शवादियों के अनुसार पाठ्यक्रम निम्न  प्रकार का होना चाहिए :-

पाठ्यक्रम का प्रमुख आधार जीवन के सर्वोच्च आदर्श होने चाहिए।

• पाठ्यक्रम में अपनी सभ्यता संस्कृति को प्रतिबिंबित करना चाहिए।

• पाठ्यक्रम में मानव जाति के समस्त अनुभवों को व्यक्त और संगठित करना चाहिए।

• पाठ्यक्रम में मानव जाति के अनुभवों के प्रतीकों को शामिल करना चाहिए।

•  पाठ्यक्रमों में विज्ञान और मानव शास्त्रों जैसे विषयों का भी होना जरूरी है।

 प्लेटो के अनुसार - पाठ्यक्रमों का स्वरूप इस प्रकार होना चाहिए :

बौद्धिक विषय  - भाषा, साहित्य, इतिहास, भूगोल, विज्ञान और गणित।
•  कलात्मक विषय  - पाठ्यक्रम में कला, संगीत और कविता को स्थान मिलना चाहिए।
नैतिक विषय - पाठ्यक्रम में धर्म, नीतिशास्त्र और अध्यात्मशास्त्र का निर्माण होना चाहिए।

 हरबर्ट के अनुसार पाठ्यक्रम -
 हरबर्ट ने साहित्य, कला, संगीत आदि जैसे विषयों को पाठ्यक्रम में प्रमुख स्थान दिया है और भूगोल विज्ञान गणित आदि गौण स्थान दिया है।

 आदर्शवाद एवं बालक
Idealism And Child :
 आदर्शवाद में बालक को शिक्षण प्रक्रिया का प्रमुख बिंदु नहीं माना जाता है बल्कि आदर्शवादी बालक की अध्यात्मिक शक्तियों में विश्वास करता है और सृजनात्मक और संवेगात्मक शक्तियों द्वारा वह बालक के व्यक्तित्व का विकास करना चाहता है उसमें सांस्कृतिक सुरक्षा की भावना पैदा करना चाहता है वह बालक को सत्यम शिवम सुंदरम की चेतना का विकास करना चाहता है वह बालक में आदर्श चरित्र गठन और पवित्र जीवन को बनाना चाहता है।
हॉर्न के अनुसार " छात्र एक परिमित व्यक्ति है किंतु उचित शिक्षा मिलने पर वह परम पुरुष के रूप में विकसित होता है। उसकी मूल उत्पत्ति दैविक ह, स्वतंत्रता उसका स्वभाव है और अमरत्व की प्राप्ति उसका लक्ष्य है। "
 आदर्शवादी बालक को शरीर से अधिक मन और आत्मा को अधिक महत्व देते हैं इसलिए उनकी शिक्षण प्रक्रिया में भाव विचारों और आदर्शों का सबसे महत्वपूर्ण स्थान होता है।

 आदर्शवाद और शिक्षक
Idealism And Teacher :

 आदर्शवादी शिक्षा में छात्र से अधिक शिक्षक को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। जेनटाइल के अनुसार-
" अध्यापक सही चरित्र का अध्यात्मिक प्रतीक है। "
 आदर्शवादी बालक की मानसिक पूर्णता सर्वोत्मुखी विकास, आत्म साक्षात्कार, आदर्श व्यक्तित्व और चरित्र निर्माण के लिए शिक्षक को प्रमुख तत्व के रूप में मानते हैं। आदर्शवाद के अनुसार शिक्षक का स्थान शिक्षण प्रक्रिया में सर्वोपरि होता है। चुंकि आदर्शवादी बालक को शरीर नहीं उसको मन को सर्वोच्च  मानते है इसलिए बालक का आध्यात्मिक और  मानसिक विकास तभी हो सकता है जब शिक्षक का व्यक्तित्व प्रभावशाली हो। जन्म के समय से ही बालकों में अनेक शक्तियां सुप्त अवस्था में होती है अतः शिक्षक का कार्य इन सुप्त शक्तियों को जागृत करना उसे बाहर निकालना है।
 शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक ही छात्र के जीवन का मार्गदर्शक होता है। शिक्षक ही बालक की शक्तियों को उचित दिशा में विकसित करने का अवसर प्राप्त करता है। शिक्षक शिक्षण प्रक्रिया कि वह धूरी है जिसके बिना शिक्षण प्रक्रिया अधूरी होती है। आदर्शवादी का कहना है कि शिक्षक का यह दायित्व है कि बालक के सर्वोन्मुखी  व्यक्तित्व का विकास करें ताकि अपने लक्ष्यों की प्राप्ति वह कर सकें। इसलिए आदर्शवादी बालक को प्राकृतिक प्राणी से सामाजिक एवं अध्यात्मिक प्राणी में परिवर्तित करने के लिए शिक्षक की आवश्यकता जरूरी है।
 रॉस शिक्षक का महत्व बताते हुए कहते हैं -

" प्रकृतिवादी किसी भी गुलाब से संतुष्ट हो जाते हैं। परंतु आदर्शवादी सुंदर गुलाब चाहता है। इस प्रकार शिक्षक अपने प्रयत्नों से शिक्षार्थी को जो अपने प्रकृति के नियमों के अनुसार परिवर्तन हो रहा है, उस स्तर पर पहुंचने में सहयोग देता है जिस पर वह स्वयं नहीं पहुंच पाता। "
 अतः आदर्शवादी शिक्षा में शिक्षक का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है।

 आदर्शवाद और विद्यालय
Idealism And School :
आदर्शवाद शिक्षण के लिए विद्यालय को बहुत अधिक महत्वपूर्ण स्थान देते हैं। उनके अनुसार विद्यालय ही एक ऐसा स्थान है जहां पर बालक को सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक गुणों को अर्जित करने का सबसे ज्यादा मौका मिलता है। यहीं पर उनमें सामाजिक गुणों का सर्वप्रथम सही रूप में विकास होता है। विद्यालय में ही बालकों का सार्वभौमिक विकास होता है।


 आदर्शवाद और अनुशासन
Idealism And Discipline :
 आदर्शवादी शिक्षा में अनुशासन को बहुत अधिक महत्व दिया गया है। आदर्शवादी विचारधारा का  मत है कि अनुशासन में ही रहकर बालक आत्मानुभूति या अध्यात्मिकता प्राप्त कर सकता है। आदर्शवादी ना तो दमनात्मक अनुशासन के पक्ष में हैं और ना ही बालक को पूर्ण स्वतंत्रता देना चाहते हैं। चुंकि अनुशासन वाह्य नियंत्रण द्वारा संभव नहीं है बल्कि यह स्वेच्छा से ही लागू हो सकता है। आदर्शवाद नैतिक गुणों का समर्थन करता है इसलिए आदर्शवाद नैतिक गुणों के विकास के लिए अनुशासन को आवश्यक मानता है। सत्यवादी, ईमानदारी,  समय, प्रबंधन, आज्ञाकारी, निष्ठा, धर्य, आत्मचिंतन आदि के विकास को आवश्यक मानते हैं। इन सभी का विकास अनुशासन पूर्ण वातावरण में ही संभव हो सकता है। इसलिए जीवन में वह अनुशासन को बहुत अधिक प्रमुखता देते हैं। इसलिए शिक्षा में अनुशासन का प्रमुख स्थान है।

 आदर्शवाद और शिक्षण विधियां या पद्धति 
  Idealism And Teaching Method :

 आदर्शवादी विचारक शिक्षण में विभिन्न पद्धतियों या विधियों को शामिल करते हैं। सुकरात प्रश्न विधि शामिल करने की बात करते हैं तो प्लेटो संवाद विधि को प्रमुख मानते हैं। अरस्तु आगमनात्मक और निगमनात्मक विधि को शिक्षण में स्थान देते हैं। हीगल तर्कविधि और हरबर्ट अनुदेशन विधि को प्रमुखता देते हैं। फ्रोबेल खेल विधि तो पेस्टोलॉजी इंद्रिय शिक्षा और क्रियाविधि द्वारा शिक्षण करने की बात करते हैं। वही डेकोर्ट सरल से जटिल की ओर ले जाने वाली शिक्षा विधि की बात करते हैं।
 इस तरह से आदर्शवादी विचारक शिक्षण विधि में प्रश्न विधि, संवाद विधि आगमन निगमन विधि निर्देशविधि, व्याख्यान विधि, वाद-विवाद विधि और खेल विधि को अपनाने के पक्ष में जोर डालते हैं।


Defects Or Demerits Of Idealism
 आदर्शवाद के दोष :

 • आदर्शवादी शिक्षण पद्धति का सबसे प्रमुख दोष यह है कि बालक को शिक्षण पद्धति में गौण स्थान दिया जाता है जो कि मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से उचित नहीं है।

• आदर्शवाद पाठ्यक्रम में विज्ञान व तकनीकी विषयों की अपेक्षा आध्यात्मिक विषयों प्रमुख स्थान देते हैं। वैज्ञानिक युग में या उपेक्षा उचित नहीं है।

• आदर्शवादी शिक्षा का उद्देश्य और अमूर्त और व्यावहारिक होता है। जिसका संबंध कई बार वर्तमान से ना होकर के भविष्य से होता है।

• आदर्शवादी शिक्षण का एक और प्रमुख दोष यह है कि शिक्षण विधियों का कई बार अनुपयोगी होना।


Influence Of Idealism Of Indian Education
 भारतीय शिक्षा पर आदर्शवाद का प्रभाव :

 भारतीय शिक्षा पद्धति आदिकाल से आदर्शवाद के प्रभाव में रहा है। वैदिक कालीन शिक्षा पद्धति का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि उस समय की शिक्षा पद्धति पूर्णता आदर्शवादी विचारधारा के अनुकूल थी। उस समय की शिक्षा पद्धति में आदर्शवाद और आध्यात्मिकता पर ज्यादा प्रमुखता दी जाती थी।
 वर्तमान की शिक्षा पद्धति आदर्शवाद के मार्ग से थोड़ी हटी हुई है। परंतु आज भी आदर्शवादी शिक्षा के उद्देश्य आत्मानुभूति 'सत्यम शिवम सुंदरम' की ओर आकर्षित होते हैं। सभी भारतीय शिक्षा आयोग ने नैतिक शिक्षा को विद्यालय पाठ्यक्रम में स्थान देने का सुझाव दिया है और शिक्षक और छात्रों के के बीच संबंधों की ओर विशेष ध्यान रखा गया है।
इसलिए शिक्षक के महत्व को समझा गया है और शिक्षक की कार्यकुशलता को बढ़ाने के लिए शिक्षक को प्रशिक्षित किया जा रहा है।


 बी .एड.  एम .एड ( B. Ed. M. Ed. ) के छात्रों के लिए विशेष रूप से 










 




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