Ticker

6/recent/ticker-posts

शरणदाता कहानी कि समीक्षा

शरणदाता  कहानी की समीक्षा




सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयान 'अज्ञेय ' का जन्म 7 मार्च सन् 1911 में और मृत्यु  4 अप्रैल सन् 1987 में हुआ।
 स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 'अज्ञेय' का संबंध क्रांतिकारियों से रहा।  'अज्ञेय ' प्रमुख रूप से एक कवि शैलीकार,कहानीकार,ललित और निबंधकार के तौर पर प्रसिद्ध रहे हैं।

 अज्ञेय' की श्रेष्ठ कहानियों में 'शरणदाता' की गिनती होती है। जिसको 'अज्ञेय' की अभिनव कृति कहा जाता है।
'शरणदाता' कहानी हिंदुस्तान -पाकिस्तान के बंटवारे के समय की है। यह मानव संघर्ष की अनूठी दास्तान है।
इस कहानी के सम्बन्ध में कहा जाता है की अबतक  हिन्दू - मुस्लिम दंगा से पीड़ित मानवता के चित्र जितने भी हिन्दी साहित्य में लिखे गये हैं, उन सब में इसका एक विशिष्ट स्थान है।

कृष्णाचन्दर  की 'पेशावर एक्सप्रेश' कहानी तथा रामानंद सागर का 'और इंसान मर गया ' उपन्यास, अज्ञेय की शरणदाता कहानी - वे ही तीन उकृकाण्ड से सम्बन्धित श्रेष्ठ रचनाएँ मानी जाती है, जिनमें 'शरणदाता ' को शिल्प और वस्तु दोनों ही तत्वों की दृष्टि से शीर्षस्थान है।

शरणदाता  कहानी शिल्प -विधान की दृष्टि से सर्वथा नई है। इस कहानी की टेकनीक प्रेमचंद या प्रसाद की कहानियों से सर्वथा भिन्न है।  'अज्ञेय' कलाकार को दो व्यक्तियों में बाँट देते हैं  - भोक्ता और रचना करने वाला मनीषी।

 'शरणदाता' का नायक स्वयं कहानी की विभिन्न परिस्थितियों का भोक्ता है और उससे तटस्थ होकर कहानी कहने वाला भी। यह विधान मनोविज्ञान एवं मनुष्य - प्रतिक्रियाओं के यथार्थ अंकन पर निर्भर करता है।

 कथावस्तु - 'अज्ञेय ' की कथावस्तु में बौद्धिकता और मनोवैज्ञानिकता का गहरा पुट है जो कहानी को मनोविश्लेषण के गहरे सिद्धांत तक ले जाता है।
इसलिए 'शरणदाता'  में कथा सूत्र बिखरा हुआ है, सांकेतिक है और सबसे बड़ी बात है कि कहानी के मर्म तक पाठक को पहुंचने के लिए कहानी में किसी रहस्यात्मक वातावरण को नहीं अपनाया गया है, बल्कि नायक की अनुभूतियों की स्वभाविक गति के साथ कहानी को चरम सीमा पर पहुंचाया गया है।

 ' शरणदाता ' कहानी के शिल्प -विधान की यह अन्यतम विशेषता है कि वे अपने कथा-सूत्र को बांधकर नहीं रखते बल्कि वे उसे फैलाते चलते हैं।
 किंतु अंत में किसी स्थल पर एक ऐसा बिंदु ढूंढ लेते हैं जहां की बिखरे हुए कथा सूत्र एक में  एक हो, ग्रथित हो जाते हैं।
 प्रस्तुत कहानी में जैबू  का पत्र और उसके अंतिम पंक्तियां इसका प्रमाण है -   " आपके मुल्क में कोई अल्पसंख्यक मजलूम हो तो यह याद कर लीजिएगा। इसलिए नहीं कि वह मुसलमान है, इसलिए कि आप इंसान हैं। खुदा हाफिज। "

 कहानी का सौंदर्य जैबू जैसे पात्र के निर्माण में है। कहानी के नायक से जैबू का कभी साक्षात्कार नहीं किंतु मानवता के उच्चादर्शो से प्रेरित जैबू देवेंद्र लाल को बचा लेती है। यह सब बड़े कौशल से कराया गया है सिर्फ विधान की दृष्टि से जैबू का कचौड़ियों के नीचे पुर्जा रखकर भेजना अथवा बिलार को अशुभ का प्रतीक बनाना कहानी का सौंदर्य है।


 कहानी को इस तरह बुना गया है, इसकी घटनाएं इस प्रकार सजाई गई है कि कहानी का रहस्य अंत तक नहीं खुलता। पाठक एक निराशावादी दृष्टिकोण से भरा रहता है, किंतु जैबू के आते ही पाठक के मन में मानवता के प्रति आस्था और विश्वास पैदा हो जाता है।

 शरणदाता के शिल्प का सौंदर्य वैयक्तिकता से निर्वैयक्तिकता की सीमा तक पहुंचने में है। यह कहानी शिल्प- विधान की दृष्टि से पूर्ण कहानी है।अंत घुमावदार होकर भी प्रभावोंत्पादक है। प्रत्येक पाठक जैबू का पत्र पढ़कर भींग जाता है।

 अज्ञेय जी भाषा के शिल्पी माने जाते हैं। 'शरणदाता' की भाषा चुस्त और कलात्मक सोंदर्य लिये हुऐ हैं। कहीं - कहीं पर तो भाषा के आधार पर ही कहानी की स्थिति के रहस्य को उदघाटित किया गया है जैसे -  "मस्तिष्क ने कुछ नहीं कहा। सन्न रहा। केवल एक नाम उसके भीतर खोया -सा चक्कर काटता रहा, जैबू..... जैबू...... जैबू.....
 इस  प्रकार अनेक स्थल हैं, जहाँ कहानीकार उस विशिष्ट भाव की अभिव्यक्ति में भाषा की शक्ति ही प्रधान रखते है। वही भाषा मनुष्य के मस्तिष्क की गहराई, कहानी के मर्म की गहराई और चरित्रों और स्थिति के अनुकूल स्वाभाविकता को अभिव्यक्त करने में अत्यंत सक्षम है।


























Post a Comment

0 Comments