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लाशों के ढ़ेर पर बैठा कौवा (हिन्दी कविता)

लाशों के ढ़ेर पर बैठा कौवा 




कौवे सारे मंडरा रहे हैं
फसल जो बोई मौत की
कुछ तट पर कुछ घाट पर
गिद्ध नजर गड़ा बैठे
लाशों के ढेर पर

सियार ने ओढ़ी शेर की खाल 
लोगों ने समझा शेर आ गया 
ऐसी बारिश हुई लाशों की
ना आग मिली ना माचिस 
सोने की परत बह गई
अब बचा लोहा या पीतल
राम राम करने वाले राम ही जाने

पर उपर बैठे राम भी चकराये 
ये कैसा राम-राज्य है
इसे अच्छा तो रावण राज्य ही था
लोग चिल्ला रहे O2- O2
 सिंहासन चिल्ला रहा टि्वटर टि्वटर

 यह कैसा खेल है शतरंज का
 राजा ही पाये जीवन
 शेष बचे सो
 गंगा के तट पर बह जाए
 चील कौवे गिद्ध हँस रहे
 कौन बड़ा मृतजीवी
 सवाल पूछ रहे सारे

 ये नादान खग क्या जाने
फिर से जुमलों की बारात सजेगी
लाशों के ढ़ेर पर.....
आँसू के नमक छिड़के जाएंगे
फिर सब हजम सब हो जायेगा
डकार भी ना सुन पाये कोई

फिर ऐसा प्रसंग सुनाया जायेगा
की इस गाथा का बखान 
चाटुकारिता के बंदर सारे
जन-जन तक पहुँचायेगे
निश्छल मन सारे
भूल कर लाशों की गिनती 
यही गुनगुनायेगें...

पर ऊपर बैठा भोले-भंडारी
देख रहा सबकी हेरा-फेरी
त्रिनेत्र जब खोलेगें बाबा
यमराज भी बचा ना पायेगें धोती
देख रहे सब जनताधारी
पैरों से खींच ना लें तख़्त सारी

राम राम का चोला ओढ़े
राम कोई पेटेंट नहीं
हर जन का ह्रदयवासी है
राम ही एक दिन बतलायेंगें 
राम ही एक दिन तीर चलायेंगें....

~रश्मि 

















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