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गोदान उपन्यास की समीक्षा - प्रेमचंद

गोदान उपन्यास की समीक्षा



 सन 1936 में प्रकाशित ' गोदान ' उपन्यास मुंशी प्रेमचंद्र  का सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास है। प्राय: सभी आलोचकों का यह मत है कि 'गोदान' प्रेमचंद के उपन्यासों का शीर्षमणि है। इसमें उपन्यास कला अपने पूरे वैभव और सौंदर्य  के साथ प्रगट हुई है। प्रेमचंद जी के उपन्यास गोदान को लिखने का उदेश्य गांधी जी के रामराज्य जैसे समाज की स्थापना करना है जहाँ अत्याचार, अन्याय, शोषण, सामाजिक विषमताओं और विरूपताओं से रहित हो।

 कथावस्तु :-
 गोदान उपन्यास की कथा औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत किसान का महाजनी व्यवस्था के अंतर्गत सामाजिक कुरूपता  शोषण, अत्याचार से उत्पन्न भारतीय कृषक जीवन के संघर्ष की कथा है।
 इसमें दो कहानियां  साथ-साथ चलती है। 1 ग्राम जीवन से संबंधित और दूसरी शहरी जीवन से संबंधित।
 गुलाब राय के विचारों अनुसार - ग्रामीण कथा को मुख्य और नगर कथा गौण अथवा प्रसांगिक मानते हैं। इन दोनों कहानियों का संबंध-स्थापना रायसाहब और गोबर द्वारा होता है। राय साहब के यहां रामलीला देखने के लिए नगर के संभ्रांत और गोबर मजदूर बनकर जाता है वहां इन इन लोगों के संपर्क में आता है। इस प्रकार हुए दोनों कथाएं एक दूसरे के साथ मिल जाती है।

 गोदान उपन्यास प्रधानता: ग्रामीण जीवन का  उपन्यास माना जाता है फिर भी इसमें नगर कथा को जोड़ने का क्या कारण था?
यह प्रश्न आलोचकों ने उठाया है और इसके उत्तर अलग-अलग दिए हैं। इनमें से अधिकांश की यह धारणा रही है कि नागरिक कथा उपन्यास की कथावस्तु के संगठन को शिथिल बना देती है। मूल कथा से उसका तारतम्य नहीं बैठ पाता। परंतु यह आलोचना करने करने का शुद्ध शास्त्रीय दृष्टिकोण है।

प्रेमचंद 'गोदान' में भारतीय समाज का समग्र चित्र उतारना चाहते थे, जिसका प्रमुख भाग गांव में बिखरा पड़ा है। उन्होंने इसमें किसानों के होने वाले उस शोषण का चित्रण किया है जिससे प्रत्यक्ष रूप से तो जमींदार करते हैं और प्रत्यक्ष रूप से नगर वाले।

 राय साहब खन्ना की मिल के शेयर खरीदते हैं और शहरी मित्रों को दावत देते हैं, अधिकारियों को डालियां पहुंचाते हैं। आखिर यह सब कहां से आता है और कहां चला जाता है ? स्पष्ट है कि किसानों से आता है और विलास  आदि के उपकरणों एवं अधिक धन कमाने की लालसा से खींचकर नगर चला जाता है। इस तरह प्रेमचंद अगर  नगरीकथा को ना लाते तो शोषण के चक्र का यह चित्र अधूरा ही रह जाता।

 ग्रामीण जीवन शहरी जीवन की तुलना में अधिक सुंदर पवित्र और सादा होता है। नगरों में विलास है, सौंदर्यीकरण  है इसलिए पाप है। यह सारी बात दिखाने के लिए गोदान में शहरी कथा को जोड़ना कला एवं उद्देश्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था और यही प्रेमचंद्र ने किया।


 चरित्र-चित्रण -

 चरित्र चित्रण की दृष्टि से तो प्रेमचंद का गोदान में असाधारण सफलता प्राप्त हुई है, ऐसा वाजपेयी जी का कहना है। उनके पात्र कठपुतली न होकर रक्त मांस के बने सजीव व्यक्ति हैं। पात्रों के चरित्र में सर्वत्र गतिशीलता है, वे स्थिर नहीं है।  यद्यपि होरी को इस उपन्यास का नायक माना जाता है मगर प्रेमचंद ने किसी एक ही पात्र को प्रमुखता नहीं दी है बल्कि कुछ विशिष्ट पात्रों को परिपूर्ण आदर्श के विभिन्न अवयवों के रूप में उपस्थित किया है और यह पात्र अपने अपने क्षेत्र में परीचित्र आदर्श हैं, होरी, धनिया, मालती, मेहता, सिलिया, आदि। इनके सभी पात्र मानव है, लोकोत्तर प्राणी नहीं।

होरी -
होरी भारतीय किसान का मूर्तिमान सजीव रूप है। भारतीय किसान की समस्त विषमताओं का वह जीवंत प्रतिनिधि है। महाजनों का एक पूरा दल दातादिन, झिंगुरी सिंह, राय साहब, पुलिस पंच आदि सभी उसे चूसते हैं। होरी सदैव परिस्थितियों के सम्मुख नतमस्तक होता रहता है कभी विद्रोह नहीं करता उसकी सरलता ईमानदारी उदारता ही उसके चरित्र की सबसे बड़ी पूंजी है लेकिन जीवन भर संघर्ष करने वाले ऐसे प्राणी की मृत्यु पर एक गौ भी दान करने का न हो,  इससे अधिक जीवन की विडंबना और क्या हो सकती है।

धनिया -
 होरी की पत्नी धनिया ऊपर से बादाम की तरह कठोर पर हृदय से मक्खन के समान कोमल है।
 वह एक सच्ची भारतीय नारी का रूप है जो  जीवन-भर अपने पति के कंधे से कंधा मिलाकर चलती है। परंतु होरी की तरह अन्याय और अत्याचार को बिना विरोध किए रह नहीं सकती। वह जीभ की हल्की जरूर है इसलिए साफ कहनेवाली है।  होरी पर प्राय: तीखे वयंग्य कसती रहती है। गाय की हत्या के समय होरी के भाई पर इल्जाम लगाती है और बदले में होरी से मार खाती है। वह हृदय की कोमल है इसलिए झुनियाँ के पांव पकड़ने पर उसे गले लगाकर आश्रय भी देती है।

 अन्य पात्रों में झुनियाँ सिलिया आदि आकर्षक है सिलिया समाज की दुर्व्यवहार की शिकार है। जाति से चमार होने पर भी आदर्श सती है।
मिसेज खन्ना प्राचीन आदर्शों वाली नारी है मालती प्रेमचंद के शब्दों में नवयुग की साक्षात प्रतिमा है।
 वह खन्ना आदि को खूब उल्लू बनाती है।
बाद में मेहता के प्रति आकर्षित होने पर उसके जीवन में परिवर्तन आ जाता है वह ग्रामीण सुधार में मेहता का साथ देती है और एक तितली देवी बन जाती है।

 अन्य पुरुष पात्रों में प्रोफ़ेसर मेहता का चरित्र विशेष आकर्षक है। उनके चरित्र द्वारा प्रेमचंद ने यह दिखाया है कि किस तरह के लोगों को जनता की सेवा के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए।
 मेहता निर्भीक और स्पष्ट वादी है मौका पड़ने पर वे राय साहब और खन्ना को उनके मक्कारी और धन लिप्सा के लिए खूब फटकारते हैं।
स्त्री आंदोलन विषयक उनके विचार रूढ़िवादी हैं। मालती उनके संसर्ग में आकर तितली से त्यागमयी नारी बन जाती है।

 गोबर एक अल्हड़ और उग्र विचारों वाला एक 16 वर्षीय युवक है। वह अत्याचार को सहन न कर सकने के कारण नगर को भाग जाता है।
 किंतु वहां से भी निराश होकर अंत में गांव लौट आता है। वह नगर से अनेक बुराइयां भी सीख जाता है परंतु नगर में रहने से उसमें एक नवीन राजनीतिक चेतना आ जाती है जिसके कारण वह बड़े लोगों की असलियत को समझ जाता है। वह भाग्य और रूढ़ियों पर विश्वास करना छोड़ देता है।


 दातादिन का चरित्र कला की दृष्टि से बड़ा सुंदर है। वह निर्मम कठोर स्वार्थी लोलुप युवक है जो धीरे-धीरे खुद को बदलकर सीलिया का तप सफल कर देता है। अंत में जब पुनर्मिलन होने पर सिलिया उससे पूछती है कि तुम ब्राह्मण होकर एक चमारिन के साथ कैसे रहोगे तो वह जवाब देता है - "जो अपना धर्म पाले वही ब्राह्मण, जो धर्म से मुंह मोड़े वही चमार है।"


 राय साहब और खन्ना ढोंगी देशभक्तों के ज्वलंत प्रतीक है। उनके चरित्रों में धनी व्यक्तियों की सारी मक्कारी आ गई है। वे दोनों नाव में एक साथ पैर रखकर चलने वाले राष्ट्रवादी और जी हजूरी बजाने वाले प्राणी है।
तंखा गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले रईसों का एजेंट है। ओंकारनाथ खद्दर धारी ढोंगी संपादक है। मिर्जा खुर्शीदअली फक्कड़ और मनमौजी हैं।

 ग्रामीण पात्रों में विसरूसाह,  दुलारी, मंगरूसाह,
झींगुरीसाह, दातादिन, नोखेराम आदि सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। इस प्रकार गोदान के सभी पात्र शहरी और ग्रामीण युग-जीवन का साकार चित्र  उपस्थित करते कर देते हैं।

कथोपकथन -
कथोपकथन की दृष्टि से भी गोदान एक उत्कृष्ट कलाकृति प्रमाणित होती है। उसके कथोपकथन सर्वत्र सजीव, पात्रानुकूल चरित्र को स्पष्ट करने वाले और कथा को गति देने वाले हैं। सोना और झूनियाँ के ननद भाभी के मजाक तथा झिंगुरी सिंह की नकल के कथोपकथन काफी मनोरंजक है। झूनियाँ और गोबर के प्रेम से संबंधित बातचीत भी सरस और मार्मिक है।

 वातावरण - पात्रों के अनुकूल वातावरण की सृष्टि करने में प्रेमचंद्र अद्वितीय है। सोना का पति मथुरा और सिलिया चमारिन जब अंधेरे में मिलते हैं तो उस समय का चित्रण देखिए -

" बरोठे में अंधेरा था। उसने सिलिया का हाथ पकड़ अपनी और खींचा सिल्ली का मुंह उसके मुंह के पास आ गया था और दोनों की सांस और आवाज देह में कम्प हो रहा था "
 ग्रामीण जीवन के चित्र तो इस उपन्यास में बड़े सुंदर और यथार्थ उतरे हैं।

" लू चल रही हैं, बगुले उठ गए हैं,  धरती तप रही है, मगर किसान अपने खलियान में कार्यरत है। कहीं मड़ाई हो रही है, कहीं अनाज ओसा जा रहा है। कामगार अपने अपने हक के लिए चारों तरफ जमा है। "

 एक किसान के घर का वर्णन देखिए - 
" कोने में तुलसी का चबूतरा है दूसरी और ज्वार के कई बोझ दीवार के सहारे रखे हैं।समीप ही ओखल के पास टूटा हुआ धान पड़ा है खपरैल पर लौकी की बेल से लौकियां या लटक रही है साड़ी में एक गाय बंधी है। " आदि। ग्रामीण जीवन के ऐसे चित्र उतारना प्रेमचंद की ही कलम का काम था क्योंकि उन्होंने चित्र कल्पना में ना गढ़ कर आंखों से देखकर खींचे थे।

 भाषा शैली -
 भाषा के क्षेत्र में तो प्रेमचंद सम्राट हैं उनकी भाषा सरल, सुंदर, व्यंग और प्रवाह के कारण आदर्श मानी जाती है। यह तीखी पैनी और मर्म पर प्रभाव डालने वाली होती है।
वह जनसाधारण के जीवन से शब्द चित्र बनाती है। गोदान की भाषा में 'एक नया रस ' लचक और योवन सा आ गया है, वह अधिक परिष्कृत, मधुर और साहित्यिक हो गई है।
 एक उदाहरण देखिए  -  वह अभिसार की मीठी स्मृतियां याद आई। जब वह अपने उन्नत उसाँसो में, अपनी नशीली चितवनों में मानो अपने प्राण निकाल कर उसके चरणों पर रख देता था। झुनियाँ किसी वियोगी पक्षी की भांति अपने छोटे से घोसले में एकांत जीवन काट रही थी। वहां नर का मत आग्रह न था, ना वो उदिप्त उल्लास, ना शावकों की मीठी आवाजें, मगर बहलिये का छल भी तो वहां  न था। "


 भाषा गाम्भीर्य का एक और उदाहरण देखिए -

 " वैवाहिक जीवन के प्रभाव में लालसा अपनी गुलाबी मादकता के साथ उदय होती है और हृदय के सारे आकाश को माधुर्य की सुनहरी किरणों से रंचित कर देती है। फिर मध्याह्ण का प्रखर ताप आता है, छन छन पर बगुले उठते हैं और पृथ्वी का काँपने लगती है। लालसा का सुनहला आवरण हट जाता है और वास्तविकता अपने नग्न रूप में सामने आ खड़ी होती है। उसके बाद विश्राममयी है,  शीतल और शांत, जब हम थके हुए पथिकों की भांति दिनभर की यात्रा का संध्या आरती वृतांत कहते और सुनाते हैं, तटस्थ भाव से मानो हम किसी ऊंचे शिखर पर जा बैठे हैं, जहां नीचे का जन-रव हम तक नहीं पहुंचता। "

 'गोदान' में प्रेमचंद ने उत्कृष्ट कलाकार के सभी गुण दर्शाए हैं। उनकी शैली प्रोेढ़ हैं, पात्र सच्चे और सजीव है। ग्राम जीवन को खूब समझते हैं। उनकी रचना में सरलता और गंभीरता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि  'गोदान' प्रेमचंद की अचल कृति का स्मारक है।

 

























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