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राम-काव्य की प्रमुख विशेषता : विशिष्ट प्रवृतियां



राम- काव्य (राम-कथा) की विशिष्ट प्रवृतियां या विशेषता




 हिंदी साहित्य का प्रादुर्भाव के पूर्व ही राम कथा शताब्दियों से भारतीय साहित्य में इतनी व्याप्त होती रही थी कि समस्त भारतीय संस्कृति राममय में हो गई।
हिंदी साहित्य में रामकथा की इसी लोकप्रियता के कारण संत कवियों ने भी 'राम-नाम' का सहारा लेकर अपने निर्गुण साधना का प्रचार किया।

 हिंदी साहित्य के आदिकाल में रामानंद ने उत्तर भारत में जनसाधारण की भाषा में राम भक्ति का प्रचार किया था। जिसके फल स्वरुप हिंदी राम काव्य आधुनिक काल को छोड़कर प्राय: राम-भक्ति भावना से ही ओतप्रोत है। इस साहित्य की निम्न मुख्य विशेषताएं दिखाई देती है -

1. तुलसीदास का एकाधिपत्य
2. लोक-संग्रह 
3. दास्य भक्ति का प्राधान्य
4. कृष्ण काव्य का प्रभाव
5. राम काव्य में समन्वय
6. वैविध्य रचना शैलियां
7. छंदों का वैविध्य
8. साहित्यिक भाषा का प्रयोग।


1. तुलसीदास का एकाधिपत्य -

 हिंदी के समस्त राम-भक्ति काव्य की प्रमुख विशेषता यह है कि कवियों में रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की रचनात्मक प्रवृत्तियों की ही प्रधानता है।
 तुलसी ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम की गुण-गाथा करते हुए रामानंद द्वारा प्रचारित लोक संग्रह शगुन दास भक्ति का जो रूप प्रतिपादित किया उसे आम लोगों और कवियों ने भी स्वीकार कर लिया है तुलसी की दास्य भक्ति इतनी लोकप्रिय हुई कि राम की मधुरोपासना प्राय: जूठन मात्र रह गई।
 राम काव्य की प्रमुख विशेषता यह भी है कि राम-सीता साधारण नायक-नायिका बनकर श्रृंगारपूर्ण चेष्टा भी करते कई रचनाओं में दिखाई देते हैं।
 समस्त राम-काव्य को देखने पर लगता है इस काव्य धारा में तुलसी का एकाधिकार सा है।

2. लोकसंग्रह की भावना -
 राम काव्य में लोक संग्रह की भावना का जितना उदात्त रूप चित्रित हुआ है उतना और कहीं नहीं हुआ है। मध्यकालीन  निवृत्तिमूलक  हिंदू-जीवन को प्रवृत्ति मूलक इसी ने बनाया लोक संग्रह की भावना से वर्तमान समाज का यथार्थ चित्रण है यह लोक चेतना वास्तव में राम काव्य ने लोक भावना और देश की ऐहिकता के उत्थान में बड़ा योगदान दिया।

3. दास्य-भक्ति की प्रधानता -

 दास्य-भक्ति राम-काव्य की खास विशेषता तुलसी के राम शील, शक्ति और सौंदर्य के आकार हैं। अन्य देवताओं के प्रति भी इस काव्य में समान भावना है। समाज के प्रत्येक पूज्य और श्रद्धेय तत्व के प्रति पूज्य भावना है। इस भक्ति के आदर्श हैं राम-काव्य के इन सभी कवियों ने राम को विष्णु का अवतार माना है।

4. कृष्ण काव्य का प्रभाव -
 राम काव्य में कृष्ण काव्य का प्रभाव भी देखा जा सकता है। कृष्ण काम के प्रभाव के कारण राम जी की रास-कीड़ा तक का वर्णन 'अग्रदास' के अष्टध्याय नामक काव्य में मिलता है।

5. समन्वय की भावना -
 राम-काव्य में समन्वय की भी अपूर्व भावना देखी गई है। तुलसी अपनी समन्वयात्मक दृष्टि के कारण ही लोक नायक के रूप में मान हुए।
 ज्ञान का भक्ति से,
निर्गुण का शगुन से,
शिव का राम से,
प्रबंध का मुक्तक से,
ब्राह्मण का शूद्र से,
अवधि का ब्रजी से और 
लोकमत का साधु मत से समन्वय कर राम-काव्य ने अपनी उदारता और विस्तृत परिधि का परिचय दिया।

6. रचना शैली की विविधता -
 रचना शैली की विविधता राम भक्ति काव्य की अंतिम विशेषता है। इसमें रचना शैलियों का वैविध्य पाया जाता है। राम काव्य प्राय: प्रबंध काव्य है परंतु उनमें मुक्तकों का कम उपयोग नहीं हुआ है।

7. छंदों की विविधता -
 काव्य शैलियों की तरह छंदों का वैविध्य भी यहां उपलब्ध है। दोहा और चौपाई की प्रधानता होते हुए भी कवित्त, सवैया, सोहर, बरवै, कुंडलियां, सौरठ  घनाक्षरी, छप्पय, त्रिभंगी और विनय के पद आदि अनेक तरह के छंद प्रयुक्त हुए हैं।

8. साहित्यिक भाषाओं का प्रयोग -
 राम-काव्य में अनेक साहित्यिक भाषाओं का उपयोग किया गया है।
 रामचरित्र मानस में अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है। तुलसी की गीतावली छोड़ अन्य रचनाओं में अवधि का ही प्रयोग है। इन कवियों अवधि और वज्र भाषा से मेलकर अद्भुत भाषा अधिकार का परिचय दिया है तुलसी और अन्य कवियों में भोजपुरी के शब्द भी मिलते हैं।
 आधुनिक काल में राम काव्य की भाषा खड़ी बोली है जैसे मैथिलीशरण गुप्त की 'साकेत' निराला की  'राम की शक्ति पूजा' आदि।


 राम काव्य की प्रवृतियों -

1. रामानंद ने इस शाखा का प्रचार किया उन्होंने रामानुजाचार्य की शिष्य परंपरा में भक्ति को ब्रह्मप्राप्ति का साधन बनाने पर बल दिया था जिसे इस शाखा के कवियों ने स्वीकार किया।

2. इस शाखा के कवियों ने राम और सीता को इष्टदेव माना है। 'राम' विष्णु के अवतार माने जाते हैं इसमें सेव्य-सेवक भाव नाम पर बल दिया गया।

3. इस शाखा के कवियों ने लोक मर्यादा का प्रचार किया तथा वैष्णव धर्म के आधार पर बनी सामाजिक व्यवस्था का समर्थन किया।

4. अपने इष्ट देव के लिए हृदय की प्रसन्नता प्रकट करना एवं आप निवेदन करना इस शाखा के कवियों ने अपना ध्येय बनाया।

5. राम-काव्य की एक और प्रवृतियां यह है कि  उनकी कविता अभिव्यक्ति का साधन मात्र बन गई साध्य ना रही।

6. किसी की प्रशंसा करना या धन-अर्जन करना उनकी कविता का ध्यये ना रहा। 'स्वान्त : सुखाय '
 या 'लोक-कल्याणार्थ ही उनकी कवितायें होने लगी।

7. राम-काव्य की यह प्रवृत्ति भी है की ज्ञान मार्ग और रहस्यवाद संबंधी भक्ति का अद्भुत रूप त्याग कर वेद-शास्त्र और वैष्णव धर्म के आदर्शों को उन्होंने श्रेष्ठ माना है।

8. भगवान की कृपा को महत्ता दी तथा अपने कर्म और गुणों की महत्व को कम स्वीकार की गई है।

9. समाज में पड़ी व्याप्त धार्मिक विवादों को हृदय परिवर्तन द्वारा सुलझाने का प्रयास किया।

10. कला की दृष्टि से हृदय पक्ष के साथ ही अलंकारों एवं छंदों का मुक्त प्रयोग हुआ है।

11. अब तक के साहित्य में व्वहरित सभी शैलियों में रचनाएं हुई है।

12. अवधि को प्रमुखता प्राप्त हुई तथा उसे साहित्य के रूप में प्रयुक्त किया गया वज्र-भाषा को भी अवधि के साथ-साथ साहित्यिक रूप प्राप्त हुआ।

( हिंदी विषय के छात्रों के लिए विशेष )







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