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'मैला आँचल' की शिल्प-कला (कथा-वस्तु)

मैला आँचल की शिल्प कला  (कथा-वस्तु)



फणीश्वर नाथ 'रेणु' हिंदी के आंचलिक उपन्यास के जनक कहे जाते हैं। 'मैला-आंचल' रेणु जी के द्वारा लिखा हुआ एक अद्धभुत आंचलिक उपन्यास है।


 किसी भी उपन्यास के शिल्प पर हम सबसे पहले जब विचार करते हैं तो  कथावस्तु और उसका सम्यक विन्यास उपन्यास का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व होता है, क्योंकि उसी के माध्यम से संपूर्ण  उपन्यास का ढांचा निर्मित होता है। उपन्यासकार की प्रतिभा उसके कथा शिल्प और भाषा शिल्प की उत्तमता के दर्शन हमें कथा प्रसंगो के विन्यास और उसके संबंध-निर्वाह में हुआ करते हैं।

 "मैला-आंचल" फणीश्वर नाथ रेणु का एक जटिल कथावस्तु वाला उपन्यास है, जिसके माध्यम से रेणु ने बिहार के पूर्णिया जिले के मेरीगंज नामक स्थान की सभ्यता संस्कृति वहां की राजनीतिक गतिविधियों अफसरों की धूर्तताएँ और मठों के महंतों की चारित्रिक पतन का बड़ा ही अच्छा और स्वाभाविक चित्रण किया है।
 यद्यपि मैला आंचल उपन्यास का कथा भाग अत्यंत जटिल है तथा आकार की दृष्टि से भी यह उपन्यास यदि वृहत-काय नहीं तो मध्यम-काय अवश्य है। इसमें अनेक कथासूत्र हैं जिनके विकास में अनेक प्रसांगिक तथा कथासूत्र तथा अंतरकथाओं का आश्रय लिया गया है।

 "मैला-आंचल" की कथावस्तु का आंचलिक आधार है एवं इसके चरित्र चित्रण में संवादों में भाषा शैली और देश काल का चित्रण है भौगोलिक परिस्थिति का विशद वर्णन और लोक संस्कृति का सुक्ष्म चित्रण उपन्यास को भव्य बनाने में सहायक हुए हैं इन विशेषताओं के आधार पर हम इस उपन्यास के तत्वों की कसौटी पर इसके शिल्प कला पर विचार करते हैं।

वस्तु-विन्यास ( कथावस्तु )
 कथा-शिल्प की दृष्टि से वस्तु-विन्यास को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है -
1. मुख कथा सूत्रों की परस्पर सम्बद्धता और एक सूत्रता 
2. प्रासंगिक कथा-सूत्रों की मुख्य कथा-सूत्रों से सम्बद्धता
3. संपूर्ण कथाँसों की एकान्वति
4. कथाँसों का विस्तार-भार


1. मुख कथा सूत्रों की परस्पर सम्बद्धता और एक सूत्रता -
 रेणु द्वारा लिखित "मैला-आंचल" का मूल
कथा-सूत्र बिहार के पूर्णिया जिले के मेरीगंज नामक गांव के राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, एवं सामाजिक स्वरूप की झांकी प्रस्तुत करना है। आंचलिक उपन्यासों की कथावस्तु एक विशिष्ट क्षेत्र में घिरा रहता है। पात्र भी क्षेत्र विशेष के बाहर नहीं जाते हैं। यह कथानक उस क्षेत्र का सजीव और सजग चित्र प्रस्तुत करता है।

 मैला आंचल में कोई एक प्रसंग या कथा,
मूल -कथा और अन्य कथाएं उसकी पूरक नहीं है, अपितु नाना कथाओं के समन्वित रूप से एक संश्लिष्ट कथा का निर्माण होता है जो मेरीगंज के बहु-आयामी जीवन का प्राय: समग्र चित्र प्रस्तुत करता है।

 इस रूप में डॉ प्रशांत के प्रसंग के माध्यम से ग्रामीण समाज में पर्याप्त अंधविश्वासों को उभारने में सहायता मिली है। मठ-मंदिर, मस्जिद और उन में व्याप्त भ्रष्टाचार का उद्घाटन सेवादास, लक्ष्मी रामदास, लरसिंघदास, और रमपिरिया के
कथा -सूत्रों द्वारा किया गया है।
बलदेव और बावनदास के माध्यम से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की गतिविधियां स्पष्ट की गई है तो कालीचरण और वासुदेव उस समय के सोशलिस्ट पार्टी के क्रियाकलापों से संबंधित हैं।
 विश्वनाथ प्रसाद, खिलावन यादव, रामकृपाल सिंह के माध्यम से गांव के खाते-पीते घरों में अपनी-अपनी जातिगत टोलियां बनाकर किस प्रकार की प्रतिद्वंद्विता चलती है इस तथ्य का उद्घाटन किया गया है।
 फुलिया और रमपिरिया के माध्यम से निम्नजातियों में पड़ी व्याप्त शिथिल नैतिक मापदंडों पर प्रकाश डाला गया है। अभिप्राय यह है कि मैला आंचल के सभी प्रमुख कथा-सूत्र और असंबद्ध ना होकर मेरीगंज के जनजीवन की झांकी प्रस्तुत करने के तथ्य से जुड़े हुए हैं।


2. प्रासंगिक कथा-सूत्रों की मुख्य कथा-सूत्रों से सम्बद्धता -
 मैला आंचल में प्रासंगिक कथा-सूत्र के प्रसंग अधिक है। यद्यपि उपन्यास पढ़ते समय यत्र-तत्र ऐसा लगता है कि उपन्यासकार मूल कथा को ना बढ़ाकर इधर उधर की पहेलियां बुझा रहा है किंतु कुल मिलाकर यही कहना पड़ेगा कि कथानक में  विश्रृंखला प्रतीत नहीं होती।

3. संपूर्ण कथाँसों की एकान्वति -
 संपूर्ण कथाओं की एकान्वति की दृष्टि से मैला-आंचल एक सफल उपन्यास है। विभिन्न पात्रों को लेकर विकसित होने वाला कथानक अंशत:           विश्रृंखल  प्रतीत होते हुए भी मूलत: के सूत्र में गुंफित है।

4. कथाँसों का विस्तार-भार -
 कथा-विस्तार की दृष्टि से भी विचार करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि उपन्यासकार ने कथाओं के वर्णन में विस्तार के औचित्य का निर्वाह किया है और कतिपय प्रसंगों के अतिरिक्त कहीं भी ऐसी अनुभूति नहीं होती कि फणीश्वरनाथ रेणु किसी प्रसंग को अनावश्यक तूल दे रहे हैं।

 इसी उपन्यास विशेष में किसी एक पद्धति का ही प्रयोग नहीं किया जाता, बल्कि अनेक पद्धतियों का आश्रय लिया जाता है जिससे उसकी कथा-शिल्प में वैविध्य और रोचकता का समावेश हो जाता है। मैला आंचल में निम्नांकित पद्धतियों का सहारा लिया गया है  -

1. कथात्मक या वर्णनात्मक पद्धति
2. संवादात्मक या नाटकीय  पद्धति
3. मनोविश्लेषणात्मक पद्धति
4. फ्लैश बैक या प्रत्यवलोकन पद्धति
5. काव्यात्मक अथवा भावात्मक पद्धति

 आंचलिक भाषा-शैली -
 मैला आंचल एक आंचलिक उपन्यास है। अतः आंचलिक उपन्यास होने के कारण इसकी भाषा शैली में बिहारी हिंदी या पूर्णिया जिले की बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया गया है।

 महानगरों  में जन्मे-पले-बढ़े पाठकों को समझ में यह कठिनता से आती है इस कारण से इसकी रोचकता को आंशिक क्षति अवश्य पहुंची है अन्यथा इसकी कथावस्तु पूर्णता रोचक है अनेक प्रसंगों में पाठकों की जिज्ञासा वृति  यह जानने को आतुर रहती है कि फिर क्या हुआ होगा ?

 कालीचरण और मंगला प्रशांत और कमला, बलदेव और लक्ष्मी संबंधी वृतांत इसी प्रकार के हैं की रोचकता बनी रहती है।
उपन्यास का आरंभ भी बड़ी रोचक शैली में किया गया है और अंत भी धनात्मक है।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि मैला आंचल  कथा-शिल्प और भाषा शिल्प की दृष्टि से यह एक  सफल और कलात्मक  आंचलिक उपन्यास की महानतम कृति है।
























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