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अमीर खुसरो (Amir khusro)

अमीर खुसरो  (Amir khusro)





उर्दू भाषा के प्रथम कवि अमीर खुसरो देहलवी हैं । खुसरो प्रथमतः फारसी कवि के रूप में जाने जाते हैं, इन्हें हिंदी का भी प्रायः प्रथम कवि होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है ।

वंश - अमीर खुसरो के पूर्वज हजारा  तुर्क थे और उनके मूल कबीले का नाम 'लाचीन' था । इस कबीले का मूल स्थान तुर्किस्तान का खस नामक स्थान था जो अब 'कबतुल खजरा'  कहलाता है । 'कश' से उनके पूर्वज बलख आ गए थे । वहीं से उनके पिता भारत आए । 

जन्मस्थान - अमीर खुसरो का जन्म स्थान काफी विवादास्पद है। भारत में प्रसिद्ध यह है कि वह उत्तर प्रदेश के एटा जिले के 'पटियाली' नाम के स्थान पर पैदा हुए थे कुछ लोग अमीर खुसरो का जन्म स्थान भारत से बाहर अफगानिस्तान में होने की बात करते हैं। 1976 में पाकिस्तानी लेखक मुमताज हुसैन की पुस्तक 'अमीर "खुसरो देहलवी : हयात और शायरी" में सभी मतों का खंडन करते हुए सिद्ध किया कि अमीर खुसरो का जन्म स्थान दिल्ली ही है। दिल्ली में उनका जन्म स्थान मानने वाले यह भी कहते रहे हैं कि खुसरो का पैतृक घर दिल्ली के पास 'नमकसराय' में था।

जन्मतिथि - अमीर खुसरो की जन्म तिथि भी अलग-अलग बताई गई है । वस्तुतः उनका जन्म 652 हिजरी में हुआ था जो सन 1253 ।-54 ईस्वी में पड़ता है ।

नाम - खुसरो का मूल नाम खुसरो ना था । उनके पिता ने इनका नाम 'अबुल हसन ' रखा था । 
 'खुसरो' नाम उनका उपनाम था ।  किन्तु आगे चलकर यही उपनाम ही इतना प्रसिद्ध हुआ की लोग यथार्थ नाम को भूल गए ।
अमीर खुसरो में  'आमिर'  रखा जलालुद्दीन खिलजी ने उनकी कविता से प्रसन्न हो इन्हें 'अमीर ' का खिताब दिया और तब से यह 'मलिकुशोअरा अमीर खुसरो ' कह जाने गये ।

माता पिता - खुसरो की मां एक ऐसे परिवार से थी जो मूलत हिंदू था तथा जिसने इस्लाम इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था ।उनकी मातृभाषा हिंदी थी उनके नाना का नाम रावल एमादुलमुल्क था ।
यह बाद में नवाब एमादुउल मुल्क के नाम से प्रसिद्ध हुए तथा तथा बलवान के युद्ध मंत्री बने।  ये ही मुसलमान बने थे पर उनके घर में सारे रस्मो रिवाज हिंदुओं के थे। यह दिल्ली में ही रहते थे। खुसरो के पिता सैफुद्दीन मोहम्मद तुर्किस्तान के लाचीन कबीले के एक सरदार थे। मुगलों के अत्याचार से तंग आकर यह 13वीं सदी में भारत आए ।

कुछ लोगों के अनुसार यह तीन भाई थे पर अधिक प्रामाणिक मत यह है कि यह दो भाई ही थे। अमीर खुसरो बड़े थे और उनके छोटे भाई का नाम हिमामुद्दीन था।

गुरु - ऐसा अनुमान है कि खुसरो के पिता अनपढ़ थे लेकिन उन्होंने अपने बेटे के पढ़ने लिखने का अच्छा प्रबंध किया था । वह बचपन से ही मदरसे जाने लगे थे उन दिनों सुलेखन पर काफी ध्यान दिया जाता था। परंतु सुलेख आदि में खुसरो का मन नहीं लगता था पर बहुत ही कम उम्र से ही वह काव्य में रुचि लेने लगे थे। 10 वर्ष की उम्र में उन्होंने काव्य रचना प्रारंभ कर दी थी। खुसरो ने सच्चे अर्थों में अपना काव्य गुरु कदाचित किसी को नहीं बनाया। 
खुसरो ने काव्य के क्षेत्र में शिक्षा किसी व्यक्ति से ना लेकर सादी, सनाई, खाकनी, अनवरी,  कमाल आदि काव्य ग्रंथों से ली जिनका प्रभाव स्पष्टः था। उनकी कई रचनाओं और कृतियों पर है धर्म के क्षेत्र में उनके गुरु हजरत निजामुद्दीन औलिया थे। आठ वर्ष की कम उम्र में ही अमीर खुसरो  उनके शिष्य हो गए थे।

ज्ञान - खुसरो को हिंदी, फारसी, तुर्की, अरबी तथा संस्कृति आदि कई भाषाओं का ज्ञान था । उनके साथ ही दर्शन धर्मशास्त्र, इतिहास, युद्ध विद्या, व्याकरण, ज्योतिष, संगीत आदि का भी इन्होंने अध्ययन किया था।

विवाह और संतान - खुसरो के विवाह के संबंध में कहीं उल्लेख नहीं मिलता किंतु निश्चित है कि उनका विवाह हुआ था। उनकी पुस्तक 'लैला मजनू' से पता चलता है कि उनको एक पुत्री थी ।
जिसे तत्कालीन सामाजिक प्रवृत्ति के अनुसार उन्हें काफी दुख था। उक्त ग्रंथ में अपनी पुत्री को संबोधित करके उन्होंने कहा था कि तो तुम पैदा ना होती या पैदा होती तो भी होती भी तो पुत्र रूप में होती।
एक पुत्री के अतिरिक्त उनके तीन पुत्र और भी थे।

देश प्रेम -  खुसरो में देश प्रेम कूट-कूट कर भरा था। उन्हें अपनी मातृभूमि भारत पर बहुत गर्व था। उनकी रचनाओं में कई स्थानों पर भारतीय ज्ञान, दर्शन, अतिथि सत्कार, फूलों, वृक्ष और रीति रिवाज और सौंदर्य की मुक्तकंठ से प्रशंसा मिलती है।

जीविका आश्रय - खुसरो के जन्मजात कभी होने के बावजूद व्यवहारिकता की उन्हें कमी नहीं थी। 20 वर्ष की उम्र तक आते-आते कवि रूप में उनकी काफी प्रसिद्ध हो गई  उस समय तक उनके नाना जीवित थे इसलिए उन्हें किसी प्रकार के आश्रय की आवश्यकता नहीं थी, परंतु नाना के देहांत के उपरांत उनके सामने जीविका का प्रश्न आया । तब  वो विभिन्न शासको के दरबारी बने ।
खुसरो को सबसे पहला आश्रय बादशाह जलालुद्दीन के भतीजे अलाउद्दीन किशलू खान बारबक ने दिया ।
वे इलाहाबाद के हकीम थे। उसके बाद खुसरो ने बूग़रा खान को अपना आश्रय दाता बनाया। खुसरो के आश्रय दाताओं में मुल्तान के सुल्तान मोहम्मद भी थे।
 परंतु खुसरो को वहां पर मन नहीं लगा।
 गुलाम वंश के बाद दिल्ली के बादशाह जलालुद्दीन खिलजी अपने दरबार में अमीर खुसरो को रखा और बड़ा प्रेम और सम्मान दिया । उन्हें 'अमीर' की पदवी दी। खुसरो 'मल्लिकुशोयरा अमीर खुसरो' कहे जाने लगे ।

व्यक्तित्व -  खुसरो का व्यक्तित्व बहुत ही बहुरंगी और आकर्षक था अत्यंत प्रतिभाशाली संपन्न कवि, गद्य लेखक, इतिहासकार, संगीतज्ञ , ज्योतिषी और जादूगर तो वह थे ही इसके के साथ ही वे एक बहुत व्यावहारिक दरबारी, विनोदप्रिय, जिंदादिल और मिलनसार भी थे। बहुत से लोग उन्हें उच्च कोटि का सूफी मानते हैं।

संगीत प्रेम - अमीर खुसरो एक बहुत अच्छे गायक और संगीत शास्त्री भी थे । खुसरो ने ही तीन तारों का बाजा बजाया जिसमें तीन तार की जगह सात तार होने लगे।
ऐसे ही तबला और ढोलक को भी खुसरो के नाम के साथ संबंध किया जाता है ।अमीर खुसरो अच्छे गायक भी थे। 
वाजिद अली शाह ने अपनी पुस्तक "सौतुल मुबारक" में अमीर खुसरो को ख्याल  का नायक कहा है।
खुसरो 'कव्वाली' और 'तराना' के आविष्कारक माने जाते हैं भारतीय संगीत को अमीर खुसरो की दिन कुछ शंकाओं के बावजूद भी काफी महत्वपूर्ण है।

 रचनायें - खुसरो फारसी अरबी तुर्की और हिंदी के विद्वान थे। इसके अतिरिक्त संस्कृत का भी न्यूनाधिक पर ज्ञान जरूर था। खुसरो की अधिकांश रचनाएं फारसी में है और थोड़ी सी हिंदी में भी है। कुछ लोगों के अनुसार खुसरो के छंद चार से पांच लाख के बीच में है। 'खालिक बारी' उनकी प्रसिद्ध रचना है परंतु उनकी कृतियों की रचनाएं कितनी है यह कहना काफी मुश्किल है।
 उपलब्ध रचनाओं के आधार पर इनकी कृतियां 45 से ऊपर है।

खुसरो के प्रमुख पद गद्य निम्न रचनाओं में है -
पद दिवान - 

तुहफतुस्सिग्र 
वस्तुलहयात
गुर्रर्तुल कमाल
वकीयः नकीयं
निहायतुल  कमाल

ग्यारहमसनवियां -

किरानुस्सौदेन
मिफताहुल फुतूह
खमसाए खुसरो 
खिज्रखां व देवलरानी
नुहसिपहर
तुग्रलकनामाः
मसनवी शिकायतनामा मोमिनपुर पटियाली

अमीर खुसरो की गजलें भी है गद्य में -

 एजाजे खुसखी
तारीखें अलिई
अफजबुल कवायद 
किस्म चहार दरवेश 
राहतुत मुहिब्बीन 
इनशाए खुसरो 
कमाल: तारीखुल खुला

खुसरो ने हिंदी में भी काफी कुछ लिखा है जिसमें पहेलियां
मुकरीयां 
निस्बतें
दोसखून
ढकोसले 
गीत 
कव्वाली 
फारसी 
हिंदी मिश्रित छंद 
सुफी दोहे 
गजल 
फुटकन छंद 
खालिकबारी
 
खुसरो को अपने गुरु हजरत निजामुद्दीन औलिया के प्रति बहुत ज्यादा श्रद्धा भाव और स्नेह था। जब खुसरो को यह समाचार मिला कि उनके गुरु हजरत निजामुद्दीन का देहांत हो गया है तो वह बहुत दुखी हुए। वह अपने गुरु की समाधि पर गए और यह छंद -

" गारी सेबे सेज पर मुख पर डारे केस।
  चल खुसरो घर आपने रैन भई चहूं देस।। "

कहकर बेहोश हो गए।
गुरु की मृत्यु का खुसरो को इतना दुख हुआ कि इस सदमे को बर्दाश्त ना कर सके और 6 महीने के भीतर ही उनकी इहलीला समाप्त हो गई ।उनकी मृत्यु सन 725 हिजरी माना जाता है जो ईस्वी 1324 - 25 है ।
अमीर खुसरो महान कवि संगीतज्ञ और सूफी संत थे।

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