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धनिया का चरित्र चित्रण - गोदान

धनिया का चरित्र चित्रण




 प्रेमचंद जी को चरित्र चित्रण करने में महारत हासिल है, इसमें कोई दो राय नहीं है। मगर धनिया का जो चरित्र उन्होंने गढ़ा है आज 21वीं सदी में भी चाहे वह ग्रामीण क्षेत्र हो या शहरी क्षेत्र धनिया जैसी स्त्री लगभग हर जगह मिल जाती है।

 प्रेमचंद ने 'गोदान' के पात्र धनिया के चरित्र की कल्पना यथार्थ के धरातल पर की है। परिस्थितियों के घात-प्रतिघातों के थपेड़ो से निर्मित उसके व्यक्तित्व में जहां नारी स्वभावजन्य ममता कोमलता सहानुभूति है, वही संघर्षशील चेतना भी है। वह जीवन में संघर्ष करती है और कई बार तो वह होरी से टकराने से भी पीछे नहीं रहती। गांव समाज के ठेकेदारों पुलिस और उनके दलालों को बेहिचक फटकारती है।

 धनिया बादाम की तरह कठोर पर हृदय से मक्खन के समान कोमल है। लेकिन उसके सम्मान पर ठेस पहुंचती है तो वह शीघ्र ही आवेश में आ जाती है । आर्थिक परेशानियां ने उसका सारा सुख चैन छीन लिया है, तभी वह उग्र स्वभाव की हो गई है।

 पहले धनिया उतनी व्यवहार कुशल नहीं थी परंतु अपने विवाहित जीवन के इन 20 वर्षों में अच्छी तरह अनुभव हो गया था कि कितना भी कुछ करो कितना भी पेट-तन-मन काटो मगर कुछ नहीं होता।
हमारे समाज के आम जन-जीवन में पाए जाने वाली हर स्त्री का यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है। चाहे वह स्त्री ग्रामीण हो या शहरी।

 धनिया की उम्र 26 साल थी पर सारे बाल पक गए थे चेहरे पर झुर्रियां आ गई चेहरे का गेहुआ रंग काला पड़ गया था आंखों की रोशनी भी काम हो गई। पेट की चिंता के कारण जीवन में कभी सुख ना मिला था। गरीबी ने उसके बर्ताव को विद्रोही बना दिया था। ऐसा क्यों ना हो !  जब धनिया की 6 संतानों में तीन ही जिंदा बची थी। तीन लड़के बचपन में ही बिना इलाज के मर गए थे। धनिया को विश्वास था कि समय पर दवा दारू होती तो वह बच जाते। इन्हीं सब कर्म की वजह से धनिया के बर्ताव में कठोरता झलकती है परंतु वह अंदर से मक्खन की तरह है।

 परिस्थिति कैसी भी हो परंतु धनिया बड़ी साहसी है और प्रत्येक स्थिति का साहस के साथ मुकाबला करने की क्षमता रखती है थानेदार के कहने पर की -

" मुझे ऐसा मालूम होता है कि इस शैतान की खाला ने हीरा को फसाने के लिए खुद गाय को जहर दे दिया। " तो धनिया व्यँग्य से बिना भयभीत हुए कहती है - "यह हमारे गांव के मुखिया हैं गरीबों का खून चूसने वाले सूद-ब्याज, डेढ़ी-सवाई, नजर-नजराना, घूस-घास भी हो, गरीबों को लूटो। इस पर सूराज चाहिए जेहल जाने से सूराज ना मिलेगा सूराज मिलेगा धर्म से न्याय से।  "

 धनिया के इस वक्तव्य  में घोर सच्चाई है जिसकी तपिश यह न्याय के ठेकेदार नकली नेता, पुलिस नहीं झेल पाते हैं।

 धनिया एक सच्ची भारतीय नारी का रूप है जो जीवन भर अपने पति के कंधा से कंधा मिलाकर चलती है परंतु होरी की तरह अन्याय और अत्याचार को बिना विरोध किये सह नहीं पाती। वह यथार्थ को समझती है और परिस्थितियों के अनुसार कार्य करना चाहती है।

 पँच होरी पर दंड लगाते हैं वह सिर झुकाकर उनके अन्याय को सहन कर लेता है, क्योंकि वह पँचों को परमेश्वर मानता है। पर धनिया इस अन्याय को सहन नहीं करती है वह पँचों को कड़े रूप से फटकारती है और अनाज का एक भी दाना जीते जी देने से इंकार करती है वह बिरादरी के भय को नहीं स्वीकारती और होरी को समझाती है कि हमें बिरादरी में नहीं रहना है, बिरादरी में रहने मात्र से हमारी मुकती नहीं हो जाएगी।

वह होरी की धर्मभीरुता को धिक्कारती है, पर सफल नहीं हो पाती  है। अंत में वह हार कर कहती है ," मेरे भाग्य फूट गए थे कि तुम जैसे मर्द से पाला पड़ा। कभी सुख की रोटी ना मिली!" 
 यह उसके जीवन संघर्ष की घोर व्यथा को दर्शाता है।

धनिया जीभ की हल्की है इसलिए साफ कहने वाली है। जो बात कहना होता है वह मुंह पर ही कह देती है अपने मन में बिल्कुल नहीं रखती। होली पर वह प्रायः तीखे व्यंग्य बाण कसती ही रहती है ।
 गाय की हत्या के समय होरी के  भाई पर इल्जाम लगाती है बदले में होरी से मार भी खाती है पर चुप नहीं रहती है ।

 धनिया हृदय से कोमल भी है इसलिए झुनियां की कथा सुन और उसके दयनीय चेहरे को देखकर और उसके पांव पकड़ने पर उसे गला लगाकर आश्रय भी देती है ।

होरी के चमक कर कहने पर भी कि उसे घर से निकाल दो । लेकिन धनिया अपने तर्क से उसे परास्त करती है | वह चमारिन सिलिया को भी मातादीन द्वारा दुत्कारे जाने पर शरण देती है और सारे गांव के विरोध का सामना करके भी उसे स्नेह और प्रेम देती है, उसकी मदद करती है ।

उसके अंदर ममत्व की भावना भी है इसी कारण वह गोबर के लड़के को याद कर तड़फ उठती है । उसमें मानवीय संवेदनाएं कूट-कूट कर भरी है | दया ममता मदद की भावना उसके सहज गुण उसकी चारित्रिक विशेषता को दर्शाते हैं ।

धनिया आत्मविश्वासी दृढ़ विचारों और बड़ी जीवट् गुण ।
 वाली महिला है | एक बार संकल्प कर लेने पर यथासंभव उसे पूरा करके ही दम लेती है | 

झुनियां को घर में शरण देने के बाद उसका बाप गुस्से में अपनी गाय के पैसे वसूल करने आता है । उस समय होरी की आर्थिक स्थिति गरीबी की चरम सीमा पर पहुंच गई थी |

 भोला कहता है यदि वह झुनियां को घर से निकाल दे , तो वह अपनी गाय के दाम नहीं वसूलेगा। 
 धनिया की मानवता जाग उठती है और अपनी घोर आर्थिक विषमता की चिंता ना करते हुए भी ऐसा करने से मना कर देती है । 

धनिया में मनुष्यता भी थी और इन्हीं मानव मूल्यों के साथ वह जीना चाहती थी 
वह सच्ची भारतीय नारी की भांति पतिपरायण नारी बनी रहती है । इसलिए पति से लड़ने के बावजूद इसकी चिंता करती है उसकी सेवा करती है |

धनिया में सामान्य नारी की भारतीय निर्बलता भी है अपनी प्रशंसा पर म मुग्ध भी हो जाती है । होरी के कहने पर की भोला तुम्हारी प्रशंसा कर रहा था तो वह फूली नहीं समाती ।

 धनिया के चरित्र में त्याग है, तपस्या , कठोरता , ममता , दया है जिजीविषा और  बेचारगी भी है।

अपनी अस्मिता के लिए डटकर लड़ने की संघर्षशीलता भी है । वह गांव के तमाम शोषक को शक्तियों से टकराने को तैयार रहती है और उनके चेहरे का मुखौटा उतारती है ।
 संक्षेप में कहा जा सकता है कि धनिया साहसी, , , दयालु, जीवट, त्यागमयी, संवेदनशील पति पारायण और संघर्षशील स्त्री है ।





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