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सच पे सिलवट (कविता)

सच पे सिलवट / कविता 











किसी ने कहा
मुझसे 
झूठ बोलने में माहिर हूं 
मैने खुद से कहा 
सच खोजने में माहिर हूं 
झूठ बोलने वाले का ख्याल है 
झूठ से दुनियां बना लेंगे 
इसलिए एक झूठ को ढकने 
के लिए दूसरा झूठ बोलते हैं 
दूसरे झूठ को ढकने के लिए 
तीसरा झूठ...
पर एक दिन अपने ही झूठ के 
जाल में उलझ जाते हैं लोग ....
सच छिपाते हैं जो 
वो जानते ही नहीं 
कि सच पे 
तो सिलवट भी नहीं पड़ती 
सच तो सूरज की रश्मियां हैं 
जो सब उधेड़ देती है.....


Rashmi 

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