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छोटी कविता

बाकी मैं सर्वत्र हूं  (छोटी कविता )



जहां झूठ है 
वहां मैं नहीं
जहां छल है 
वहां मैं नहीं 
जहां दुराव छिपाव है 
वहां मैं नहीं 
चाहे शत्रु हो या सखा 
बाकी मैं सर्वत्र हूं.. 
झूठ मुझे चलता नहीं 
छल मुझे जचता नहीं 
छिपाव मुझमें अलगाव है 
बाकी मैं सर्वत्र हूं...

रश्मि 

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