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शरीर ब्रेनलेस पड़ा है (हिन्दी कविता )

शरीर ब्रेनलेस पड़ा है  (कविता )

आजकल सब होता है
कुछ भी होता है
बिना सिर पैर के होता है
इसलिए आजकल सब कुछ होता है
भूख मिटाने वाले 
किसान आतंकवादी होता है
तो खेतों में बम और बन्दुक भी उग जाते होंगे 
पत्रकार व पत्रकारिता सरेआम बिके होते हैं
मगर देशभक्त होता है
उलूल जुलुल दिखा और देख कर
जग सारा स्पिनलेस पड़े होते हैं 
बुद्धिजीवी बात करे सचाई की
तो सरेआम वो लोकतंत्र के लिए खतरा होते हैं
आजकल सब होता है
कुछ भी होता है
मगर जो होना चाहिए वो नहीं होता
नाच जमुरे और बंदर का
सरेआम रोज होता है
ना मिले डुगडुगी तो क्या  
थाली पीटने से काम होता है
जय जवान जय किसान
का नारा बस अब नाड़ा होता है
पेट भरने वाला भी भूखा
रक्षा करने वाला ही असुरक्षित
फिर भी सब अच्छा होता है
आज तक जानी नही खुशुब मिट्टी की
बिना चप्पल पहने पाँव नहीं पड़े मिट्टी पर
वो ज्ञान बाघारतेँ हैं 
और बात करते हैं
किसान हित की
तो अन्नदाता की समझ पे सवाल उठाते हैं
बंदर का ये नाच नहीं जो
फेसबुक टिवटर पे 
डुगडुगी बजाकर चले जाते हैं
पर यहां सब होता है
बुद्धि पर जो ताला पड़ा है
नाच बस नाच
इतना ही तुम्हारा दिमाग पड़ा है
चोर की दाढ़ी में तिनका कहां
तिनका में ही दाढ़ी पड़ा है
पर यहाँ सब होता है
बिना सिर पैर के होता है
ना सम्भले तो
यहाँ ना कोई गांधी है
ना भगत सिंह - ना नेता जी 
ना कोई और
आजकल सब होता है
कुछ भी होता है
इसलिए शरीर ब्रेनलेस पड़ा है.....

~रश्मि 








  

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