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मौत है या नरसंहार (कविता)


मौत है या नरसंहार
क्या कहूँ.....
मन चित्कार हो उठता है।
21वीं सदी में है
या आदिम- युग में
हर तरफ मौत
हर तरफ एक-एक सांस की भीख
आंसूओं और मातम का मेला लगा है।

डिजिटल इंडिया आज सच में
डिजिटल लग रही है
मौत का तांडव 
फेसबुक और वाट्सअप पे देखने को मिल रहा है....
कहते हैं टीका के बारे में भ्रम फैलाया जा रहा था..
तो यह डिजिटल युग भ्रम दुर करने का
उपाय भी नहीं कर पायी....
सवाल मन की बात में पूछिएगा जरूर ...
अरे माफ कीजिये
मन की बात में मन की बात कही जाती है
सवाल नहीं पूछे जाते...

खैर चंदे के पैसे से ही सही
टीका, दवाई, ऑक्सीजन की कमी तो ना होने देते....
फिर से माफ कीजिये
मेले के आयोजन में शायद खर्च हो गये होंगे 
सच कहते हैं लोग
पैसे तो हाथ का मैल है
पानी में या पानी की तरह बह गये होंगे
पर यहाँ तो लाशें बह रही है....

नींद कैसे आती होगी उन्हें ....
खैर जाने दीजिये
कुछ तो ग्लानि होगी
कुछ तो अफसोस होगा ही ना 
कुम्भ मेला और चुनावी मेला की जगह
अस्पतालों, दवाईयों, इंजेक्शनों का मेला जुटा लेते
तो आज शमशानों में लाशों का मेला तो नहीं लगता...
पर यहां तो मौत का तांडव है।

मन की एक बात कहनी है -
मर गये लोगों की....
फिर से माफ कीजिये लफ्जों का हेरफेर हो जाता है
मर गये लोगों नहीं - मारे गये लोगों की आत्मा
सपनों में ही सही
सवाल तो पूछते ही होगें....
डर नहीं लगता या 
राजा बाबू बनने में ही....
अभी तक लगे हुए हैं 
सोच रहे होगे अगला भैष कौन सा होगा
पर यहां तो मौत का तांडव है
कफन ही सबका भैष है...।

नैतिकता शब्द अब किसी की डिक्शनरी में नहीं
राजधर्म की तो बात मत पूछो
मौत है या नरसंहार
अमीर हो या गरीब 
लाशें जल रही है
सत्ता का गीत चल रहा है 
अब तो एक ही आसरा है
उपर वाले अब तेरा ही सहारा है
भेज कोई हनुमान
जो इस जलती लंका से पार करा दें....
यहाँ तो अब बस मौत का तांडव है
मौत का तांडव है....

~रश्मि 







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