तुम्हारे ईमेल
ना चेक की
तुम्हारी वाट्सअप
ना ही कोई मैसेज या कॉल
फिर भी पता चल जाता है
तुम वफादार मर्द तो नहीं....
तुम लाख छुपा लो
अपनी नाकाबिले बर्दाश्त हरकत
पर
तुम्हारी शख्सियत की बू
घरों में इस कदर फैली है
जैसे नालों से आती गंध...
तुम मर्द
हर बार अपनी
वही दुख भरी कहानी
सुनाते हो...
और बहलाते हो
उन स्त्रीयों को
जो ऊबी होती है
अपने मर्दों से
अपने घरों से
अपनी जींदगी से....
मर्द खुश हो जाते हैं
अपनी जीत पर ...
अपना चरित्र खोकर
स्त्रीयाँ खुश हो जाती है
अपने उस
अनाम दुखों से छूट कर....
अपना भी अस्तित्व है
यह सोचकर -
अब भी हममें कुछ बात है
पर बात जो थी
वो तो तिरोहित हो गई...
भूल गई
एक दिन उनका भी
चरित्रहनन भी होगा -
इसी मर्दो की प्रजाति द्वारा
उसका भी खनन होगा
खानदान उधेरे जायेंगे
तब अपनी पहचान पे
तुम्हें फिर गर्व होगा ?
फिर नया कोई दिन
आयेगा...
तुम्हारा नहीं स्त्री ?
मर्द का
फिर कोई
नया आशियाना होगा,
फिर कोई स्त्री छली जाएगी
फिर किसी का घर टूटेगा
पर
सवाल नहीं करना स्त्री
वरना
तंदूर में जला दी जाओगी
या सीने में उतर जाएगी
कोई गोली
या पंखें से लटके होंगे
शरीर तुम्हारे
और
बू चारों ओर फैलेगी...
चित्र साभार : pixabay.com
0 Comments
Do not post spam links