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फितरत (कविता /Poem)

    फितरत  (कविता)
    


    जिन्होंने हमें दुश्मनों की तरह समझ 
    अपने वजूद का पताका फहराया।
    आज हमारे कदमों में झुके पड़े हैं 
    दोस्ती का पैग़ाम लिये ।।

   लगता है उन्हें बेहद खुशफ़हमी है 
   हम बड़े अहमक हैं उनकी तरह ।
   मिरा भी इक पैग़ाम सुन लें 
   दुश्मन- ए -जान ।।

  जो अपने नहीं 
  उन्हें हम अपनी कदमों में रखते हैं ।
  दोस्तों को अपने दिल में रखते हैं 
  अपनों से मोहब्बत की लौ आंखों में हैं।।

  तू निरे क्या चीज है 
  तुम्हें तो अपनी फूंक पे रखते हैं।
 अब ना कभी खेलना मुझसे 
 कुनबा-कुनबा 
 तुम्हारी फितरत का 
 सारे जहां को ईल्म है।।


    
  रश्मि 

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