सारे चेहरे (कविता)
बड़ी शिद्दत से यूं
जैसे हम किसी और
ग्रह के निवासी हैं
हंसी आती है उनकी मूढ़ता पे,
वो क्या जाने
हमें तो आती है
पढ़नी चेहरे की लकीरें
आवाजों के उतार चढ़ाव भी
चाल और चलन
छल प्रपंच भी,
फिर भी लोग
लगे पड़े हैं
बेकार की कोशिश में
वैसे सच ही है
जैसे सारे ग्रह के एक निवासी,
वैसे ही सारे चाल-चलन के
एक ही चेहरा
सारे चेहरे एक हो गए
गुढ़मुड़-गुढ़मुड़....
रश्मि
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