प्रारब्ध लौट कर आता है (हिंदी कविता)
कुछ सच्चे लोग छोड़ कर चले जाते हैं
मुकद्दर को भी मंजूर ना हो वो बात
मूक अल्फाजों में कह कर चले जाते हैं
कुछ हासिल करने के ग़ुमाँ में
वक्त को आजमा कर चले जाते हैं
सालों का हिसाब-किताब
यूं ही पानी में बहा चले जाते हैं
मगर चलने से पहले अपना सारा दर्द
बच्चों सी रूदन में बयां कर देते हैं
काश पता होता यूं छोड़ कर लोग चले जाते हैं
सीने से जकड़ सारा दर्द खुद में समां ना लेते हम
इस जनम या उस जनम सबकी बारी आयेगी
सबके कर्मों का फल लौट कर आता है
पाप और पुण्य का लेखा जोखा
प्रारब्ध बन कर आता है
कब और कैसे जाने क्यों
कुछ सच्चे लोग छोड़ कर चले जाते हैं ।
रश्मि
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