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हर घर कुकुर (हिन्दी कविता)

हर घर कुकुर  (हिन्दी कविता)





कुकुर हमारे घर में पलते थे 
पर बड़े अहसानफरामोश थे,
कुकुर का जोड़ा
कभी आँखें तरेरे 
कभी भौंके 
बस न चलता हम पर 
वरना हमें ही निगल जाते...
बिना सिर पैर का घमंड 
कभी इधर उछले - कभी उधर उछले 
एक दिन हमनें 
कुकुर को थोड़ा बकरा मुसल्लम खिलाया 
ईश्वर ने भी थोड़ी डांट पिलाई 
हुआ चमत्कार क्षण भर में 
कुकुर की आंखें नीची 
कभी दुम हिलाए
कभी जीभ लपलपाये 
वी आर फैमिली गीत सुनाए 
हमनें खामोशी की बाड़ लगाई 
देश समाज पॉलिटिक्स में 
गली चौराहे मोहल्ले में 
हर घर एक कुकुर बाजे...

रश्मि 


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