तेरी आंखों में (कविता )
तुम्हें इक पैगाम भेज दुं
और ना हो कुछ
तो सवाल भेज दुं
याद आती है
कभी मेरी
लिख सको तो
कागज और दवात भेज दुं ....
माना जींदगी का सफर
कुछ लंबा हो चला
इश्क तो वहीं है
जताना कैसे छोड़ दूं .....
तुम वो शख्स
अब नहीं
मगर दिल तो
उसी सफर में जी रहा
फिर कैसे कहूं
तुम मेरे नहीं
ये सवाल क्या
तेरे कांधे पे छोड़ दूं ....
इंतजार खत्म होगा ना कभी
ये मेरी रुह को पता है
तुझको जो इल्म है
वो इल्म ही ना रह जाये
कब सांस रुके
और ये इश्क
मेरे सीने से फ़ना हो जाये
ये इल्तज़ा मेरी
तेरी आंखों में छोड़ दूं ।।
Rashmi
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