कठपुतली ( हिंदी कविता)
तेरे बिना रह ना पाऊं
ऐसा भी क्या है
तुझे देखे - तुझे सुने बिना जी ना पाऊं
मन मेरा
डोर तेरे हाथ में
कठपुतली की तरह
तू खींचता रहे
मैं चली आती रहूँ
ऐसा भी क्या है
जो तु कहे
जो तु दिखाये
उसे ही सच की लकीर बना आऊँ।
विवेक शक्ति है पर
इस्तेमाल कर ना पाऊँ
क्योंकि तु जो है
एक नशा सा
जैसे कोई अफीम
या चरस की गोली
आँखों में पड़ी हो।
पर ऐसा भी क्या है
जहाँ जाऊँ
तुझे संग लेके जाऊँ..
पर जो न मिले
तु कभी बिस्तर
या सिरहाने में
मन मेरा क्षणभंगुर हो जाये।
ऐसा भी क्या है
दिनकर की कविता
रेणु की कहानी
मुंशी जी के उपन्यास
क्यों ना ढूंढे तुझमें कोई
ढूंढे तुझमें -
पूछता है भारत
या पूछे इंडिया !
अरे यारां
एक ही सिक्के के दो पहलु
जो हमें पसंद
रख लें अपने दिल में।
ऐसा भी क्या है
तुझे कोई बुझ ना पाये
हर शख़्स के दिल व दिमाग से खेलता है तु
फिर भी
बुझो जरा कौन है तु ?.....
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