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किरायेदार मित्र (हास्य रचना)

किरायेदार मित्र बड़ा दुख दे जाते हैं और हम शिकवा या शिकायत भी नहीं कर पाते, बस कातर भरी नजरों से देखते रह जाते हैं, उन्हें जाते हुये।
अब मेरा किरायेदार मित्र से तात्पर्य यह है कि आपके आस-पास कोई गली मोहल्ला, आस - पड़ोस में या आपके आमने के फ्लैट में कोई किरायेदार आ जाये और आपका गहरा मित्र बन जाये और अचानक से ऐलान कर दें कि भईया हम अब यहां से जा रहें हैं। अब आप ही बताइए तब आपको कैसा लगेगा बुरा ही लगेगा ना।




मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। अब आप सौचेगें मैं कौन हूं, मेरा नाम क्या है..... तो मैं हूं एक दैनिक जीवन की छोटी-बड़ी परेशानियों से जुझती हुई, चुटकी में सभी समस्याओं को हल करती हुई, घर और बाहर के कामों के बीच आपा-धापी करती हुई भीड़ में खुद के बीच संतुलन बनाती हुई अपनी पहचान ढुंढती हुई एक गृहिणी, मां, पत्नी, बहु अब आपको जो अच्छा लगे समझ लीजिए। 
रही नाम की बात तो नाम में क्या रखा है हुजुर... कुछ भी पुकारिये - सीता, गीता मीना, टीना कुछ भी चलेगा।

तो किस्सा युं है कि मैं हूं थोड़ी अपने आप में रहने वाली, बोलती थोड़ी ज्यादा हूं पर सच बोलती हुं अब सच तो कड़वा होता ही है। किसी को बुरा लगे तो वो दही चीनी खा लें। मुझे नहीं पड़ी लोगों कि, वो क्या सोचते हैं।

अब क्या है ना कि आप सब लोग जानते हैं ही कि सच्चे लोगों को दोस्त थोड़े कम होते हैं। मगर दोस्ती होती है, तो पक्की वाली यह नहीं की बातें मन मुताबिक ना हो तो कटीस करके चल दिये।

हां हमारे जैसे लोग कभी कभार धोखा खा जाते हैं पर एक बार दोस्ती में धोखा हो जाए तो समझ लीजिए दुबारा उनसे सच्ची वाली दोस्ती होने से रही।
खैर एक बार मेरी एक दोस्त ने धोखा दे दिया सखी-सखी करके मेरा दिल ही निकालने की कोशिश की। अब ऐसे लोगों से मुझे तो दुर ही भागना था ना। इसलिए मैं जल्दबाजी में किसी से दोस्ती नहीं करती। कहते हैं ना दूध का जला फूंक फूंक कर चलता है वैसी ही हालत मेरी भी थी।

लेकिन कहते हैं ना किस्मत में सच्चा प्रेम मिलना होता है तो कुछ पल के लिए ही सही मिलकर रहता है कुछ वैसा ही दोस्ती के मामले में होता है।
लाख भागों पर राह चले कोई ना कोई सच्चा  दोस्त मिल ही जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ..... फिल्मी स्टाइल में मैं एक दिन पार्क में बच्चों को घुमा रही थी। तभी एक गोरी चिट्टी सी एक लेडीज भी अपने बेटे को साइकिल पर बैठाकर घुमा रही थी। पहली बार देखने में वह कैसी लगी मुझे नहीं पता क्योंकि मैंने इतना ध्यान से नहीं देखा था।

अब ध्यान से देखने की बात पर इस पृथ्वी पर दो तरह की औरतें होती है - पहली वह जो सामने वाली औरत या मर्द को नख से शिख तक एक नजर में अवलोकन कर लेती है। बाद में वह आराम से बता देती है कि उसने कैसे कपड़े, जूते, बिन्दी, चूड़ी पहनी हुई थी। मेकअप आदि सब का ब्यौरा तुरंत प्रस्तुत कर देगी। 
दूसरी टाइप की वो औरत होती है जो ध्यान ही नहीं दे पाती किसने क्या पहना है या नहीं कैसा मेकअप आदि किया है। ध्यान उसका इस तरफ जाता है  कि सामने वाला किस तरह से बोल रहा है। क्या बात वह बोलते हैं, कैसी सोच है आदि।
तो मैं दूसरी टाइप की औरत हूं। फिर भी मैं याद करूं तो पहली नजर में वह बिल्कुल साधारण लगी थी पटियाला सलवार सूट पहने हुए थी उसने थोड़ी सी बातें अपने बच्चे और परिवार के बारे में की फिर हम दोनों अपने अपने रास्ते हो लिये।
अब दूसरे दिन का वाक्या सुनिये हम लोग इत्तेफाक से फिर पार्क में मिले और हम मुस्कुराए हाय-हैलो की फिर कुछ बातें हुई और हमने एक दूसरे से अपने - अपने नंबर आदान - प्रदान किये। हिचकते - हिचकते ही हमारा मिलना जुलना शुरू हो गया बातें-शातें भी अच्छी खासी शुरू हो गई।

उसके बाद का आलम यह था कि 1 दिन में 2 बार तो पक्का फोन पर बातें होती थी शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता था कि हमारी फोन पर बातें ना हो सप्ताह में छह: दिन तो हम मिलते ही थे। कभी-कभी ही ऐसा होता था कि हम नहीं मिल पाते थे।
खाने-पीने का आदान-प्रदान भी होने लगा था। पर  जितनी दोस्ती हमारे बीच थी उतनी ही लड़ाई हमारे बच्चों के बीच होती थी, पर हमें इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था। दिन काफी अच्छा गुजरने लगा था जब हम खुश होते हैं तो सब अच्छा लगने लगता है।

हम लोग बचपन की सखी की तरह लाइफ को एंजॉय कर रहे थे पर सच कहूं तो वह मेरे लिए एक एंजल थी जो मेरे जीवन में आई और सब अच्छा हो गया। मैंने उस दौरान सकारात्मक ऊर्जा को बहुत महसूस किया। पर कहते हैं खुशियों को नजर लगते देर नहीं लगती। पर मेरी खुशियों पर डाका ही पड़ गया यह जानकर कि उसके पतिदेव जी का ट्रांसफर हो गया है और कुछ दिनों बाद वह चली जाएगी।

यह सुन मेरा शरीर शुन्य ही पड़ गया, लगा कि जिस पौधे को अपने हाथों से लगाया संवारा और जब फूल निकलने की बारी आई तो पौधा ही गायब हो गया।
जिस तरह किसान बड़ी मेहनत से फसल लगाते हैं और जब फसल धीरे-धीरे पकने लगती है तो अचानक से सारी फसल खेतों से गायब हो जाए तो कैसा लगता है वैसी ही मेरी हालत हो गई हताश परेशान पर क्या कर सकते हैं फसल तो गायब होने वाली थी।

कोई बात नहीं यही तो जीवन है..... खैर वह दिन भी आ गया जब वह चली गई मैं तो बस शुन्य भरी नजरों से देखती रही उसके जाने से ऐसा लगा कि जैसे मेरे दोनों हाथ खाली हो गए अब कुछ बचा ही नहीं है। पर सच कहूं वह मेरे लिए एंजल थी उसके साथ खुशी मिलती थी। जिससे मैं सब कुछ शेयर कर सकती थी।
कहते हैं ना एंजल कुछ समय के लिए हमारे जीवन में आती है आप भी सोचों आपके जीवन में कोई एंजल है या कभी आयी हो।

अब जब भी मैं किसी भी अजनबी से बातें करती हूं तो पूछ लेती हूं वह किराएदार तो नहीं और  किराएदार मित्र नहीं चाहिए।

 मुझे परमानेंट सखी चाहिए अब आप ही बताइए भला यह कोई अच्छी बात है किसी रिश्ते को बनाने में बहुत वक्त लगता है और जो रिश्ता अचानक से चला जाए तो बुरा लगेगा ही ना।    ना बाबा ना तौबा - तौबा किराएदार सखी या मित्र नहीं चाहिए। इससे अच्छा तो मैं अकेली ही भली। वैसे भी इंसान अकेले ही आया है दुनियां में अकेले ही जाएगा सब माया है........

अब आप बताइए आपके जीवन में भी ऐसा कोई मित्र या एंजेल आया है........?

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3 Comments

  1. Bahut pyari rachna... Bhagwan kare aapki friend aap ko dubara jarur mile

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    1. जो चले जाते हैं वो लौट कर नहीं आते :)

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