प्रिय सुशांत सिंह राजपूत तुम्हारी मौत की खबर टीवी पे देखकर सबसे पहले यही शब्द निकले बिहारी ऐसा कभी नहीं करते फिर तुमने ऐसा क्यूँ किया। बिहारी तो संघर्ष मेहनत और सफलता का दुसरा नाम है। मुश्किलें तो बिहारी के जीवन मेंं ना आये ऐसा हो नहीं सकता पर बिहारी कभी हारते नहीं संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते हैं
तुम युँ तो स्टार नहीं बन गये, सालों की तपस्या और मेहनत से तुमने ये मुकाम बनाया और उसे एक झटके में युँ अलविदा कर दिया। ये फैसला सही नहीं था बिल्कुल सही नहीं था। पहली बार किसी जानीमानी हस्ती की मौत पे दुख या दर्द नहीं महसुस हुआ सिर्फ और सिर्फ गुस्सा आ रहा है
ऐसी भी क्या जल्दी थी सुशांत थोड़ा और संघर्ष कर लेते अपने डिप्रेशन के साथ तो अगर अभी जीवित होते तो अपने इस फैसले पे तुम्हें भी बहुत गुस्सा आता। खुद के बारे में नहीं अपनों के बारे में तो सोच लेते अपने संघर्ष के बारे में सोच लेते पर नहीं तुम्हें तो जल्दी थी जाने की....
तुमने बिहारी के जीवन की कठनाइयों से लड़ने की अदम्य जीजिविषा को भुल गये अगर याद होता तो तुम ऐसा नहीं करते।
कोविड19 से उत्पन्न कठिनाई से लड़ते लोग तो तुमने भी देखें होंगे ना। दिल्ली, मुंबई, गुजरात आदि से भुख की लड़ाई में पैदल घर लोटते लाखों लोगों को देखा तुमने। रास्ते में भुख भी लगी, प्यास भी लगी, बीमार भी पड़े पर उन्होंने हार नहीं मानी। रास्ते मेंं किसी के अपनों ने भुख से, थकावट से दम तोड़ दिया पर उन्होंने लड़ना नहीं छोड़ा, चलना नहीं छोड़ा। धुप में जलते रहे उनके पैर में छाले पड़े पर वो चलते रहे।
पटरियों के नीचे क्षत-विक्षत हो गये उनके शरीर पर वो चलते रहे रुके नहीं उनके कदम जब तक मंजिल को पार ना कर लिया। फिर तुम कैसे रूक गये सुशांत....
सुशांत तुम ही नहीं थे डिप्रेशन के शिकार, हमसभी होते हैं कभी ना कभी या बार-बार डिप्रेशन के शिकार पर हम आत्महत्या नहीं करते, लड़ते हैं और आगे बढ़ते हैं। तुमने ऐसा करके एक बार देखा तो होता है। अब तुम्हारे जैसे सुपरस्टार हमारे आइडियल नहीं हो सकते जो सब कुछ होते हुये डिप्रेशन से लड़ नहीं सकते।
तो जिनके पास कुछ नहीं है हमारे देश के किसान, मजदूर वो हमारे आइडियल क्यों ना हो जो हर दिन भुख की लड़ाई लड़ते हैं। छोटी-छोटी चीजों के लिये संघर्ष करते हैं और छोटी-छोटी चीजों से खुश होते हैं और जीवित रहते हैं आत्महत्या नहीं करते....
एक बिहारी कठिनाइयों से
हार नहीं मानते
जेब में सौ रुपये हो
हाथ में भुना चना का ठोंगा
लेकर भी दुसरे राज्य
की खाक छान आते हैं
ट्रेन टिकट के पैसे ना हो
पर शोचालय के पास
अखबार डाल कर
दुनियांं नापने का हौसला
रख आते हैं
रोटी रोजगार के लिये
एक शहर से दुसरे शहर में
अपनी मेहनत का
हुनर पेश कर आते हैं
दुत्कारे जाने पर
अपमान का घुंट पी कर भी
अपनी सहनशीलता और सज्जनता
छोड़ नहीं पाते हैं
आत्महनन् क्या चीज है
इसे फुंंक से उड़ा देते हैं
एक बिहारी कठिनाइयों से
हार नहीं मानते हैं....
इसलिए सुशांत दुख नहीं
गुस्सा है तुम्हारे जाने का.....
~रश्मि
6 Comments
वाह लाजवाब
ReplyDeleteThanku sir
Deleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर
ReplyDeleteBahut khub rashmi
ReplyDeleteशुक्रिया :)
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