लॉकडाउन का बीसवां दिन उपर से सब सामान्य दिख रहा है पर सामान्य है क्या ?
शायद इसलिये की हम मध्यवर्गीय लोग अपने अपने घरों में बंद हमारी सामान्य दिनचर्या चल रही है सिर्फ बाहर निकलने के सिवा ।
( उच्चवर्गीय लोगों का मुझे मालूम नही )
हम यहाँ घरों में बंद जरूर हैं पर मनोरंजन तो हमारा हो ही जाता है। टी. वी. ,लूडो, कैरम, वाट्सअप आदि पर सबसे प्रमुख बात खाना.....
अब यहाँ आप सोच रहे होंगे खाने की बात कहां से आयी तो मैं ज्यादातर देख रही हूं वाट्सअप स्टेट्स के माध्यम से रोज घरों में नयी-नयी डिश बन रही है।
रोज खाने में नये -नये प्रकार के एक्सपेरिमेंट किये जा रहे हैं।
किसी के यहाँ चाट बन रहे हैं, किसी के यहाँ रसगुल्ले तो किसी के यहाँ दही -भल्ले .....
नयी -नयी रेसिपी सीख रहे और खा रहे हैं लोग।
हमलोग चार-पाँच महीने के राशन घरों में इकट्ठे कर लिये हैं। दो - तीन समय की बजाय चार- पाँच
बार खाना खा रहे हैं। क्योंकि की हमारे पास कोई काम नही है ना, फिर भी शिकायत है की मन नही लग रहा।
खुश होना चाहिए कि हम अपने घरों में परिवार के साथ तो है, ऐसी विकट महामारी के समय ।ईश्वर का शुक्रिया अदा करे कि हमारे पास घर है परिवार है भोजन है ।
पर उनका क्या जो गरीब हैं मजदूर है बेघर हैं...
रोजी रोटी की तलाश में गए लोग आने घरों में लौटने को बेचैन हैं पर जा नही पा रहे..
कुछ पैदल निकल पड़े तो किसी ने रास्ते में दम तोड़ दिया ।
जो रह गए एक वक्त भोजन के लिये भी दूसरे पे आश्रित हैं या भुखे ही रह रहे हैं.....
किसानों मजदूर गरीब की हालत बद से बदतर हो रही है या होने वाली है, कोरोना वायरस से पहले इन्हें भूख ना मार डाले।
फिर भी हमें शिकायत है लॉकडाउन में मन नहीं लग रहा ।
शुभरात्रि
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