कितनी खामोशी है ना, ये उदास शाम और ये उदास बारिश। खैर जो भी हो बारिश से हमेशा बचपन के दिन याद आते हैं। बारिश में नहाना और कागज की नाव बनाकर उसे चलाना। कितना मन लगता था ना।
गली के हम सारे बच्चे अपने घर के बाहर कागज की नाव चलाया करते थे।जिसकी नाव जितनी दुर तक जाती उतनी ही खुशियों की किलकारी सुनाई देती थी। क्या दिन थे हमेशा बारिश खुशियां ही देते थे।
पिछली बारिश मे अपने बच्चें को कागज की नाव चलाने की बात बताई तो वो बहुत खुश हो गये और जिद करने लगे मुझे भी नाव बनाकर दो मैं भी चलाऊंगा।
हमलोग घर के बाहर आये कुछ कागज लेकर।नाव बनाने की बहुत कोशिश कि पर नाव बन ही नहीं रही थी। आखिर में किसी तरह टेढ़ामेढ़ा नाव बन ही गया और बच्चे खुश भी हुये और नाराज भी नाव अच्छा जो नहीं बना था।
बच्चे नाव चलाने की कोशिश कर रहे थे और मुझे फिक्र हो रही थी वो बीमार ना पड़ जाये। लेकिन उनकी खुशी देखकर हर बात बेमानी हो गयी।
पर हमलोग क्यों इतना बदल गये कि आज बारिश मे वो बात नहीं रही या हमने छोटी - छोटी खुशियों मे खुश होना छोड़ दिया। भींगने से बचने लगे इस तरह मानो अपने आप से भागते हो। बुंदों को हथेलियों पे लेना छोड़ दिया हमने। सारे खिड़की-दरवाजे बंद कर देते हैं एक भी बुंदे अंदर ना झांक सके। क्यों सवाल बहुत गहरा है और जबाव हमारे अंतर्मन मे छिपा है पर वहां तक पहुंचने की शक्ति हमारे अंदर नहीं है।
वैसे बारिश से बचपन की याद और जगजीत सिंह कि ये गजल बहुत सटीक बैठती है।
7 Comments
Wow...Good insight Didi..This article reminds us our childhood masti and the same thing, we should give it to our kids..
ReplyDeleteThanks :)
ReplyDeleteSahi bat bachpan ki yad taza ho gayi
ReplyDeleteशुक्रिया ☺️
Deleteपुरानी यादों को संस्मरण कराती एक बहुत ही सुंदर लेख
ReplyDeleteधन्यवाद :)
ReplyDeleteThanku sir
ReplyDeleteDo not post spam links