आज सुबह फेसबुक खोलते ही यह खबर पढ़ने को मिली की लॉकडाउन की वजह से एक 12 साल की बच्ची अपने रिश्तेदार के साथ घर जाने के लिये चार दिनों तक जंगलों के उबड़खाबड़ रास्तों पे पैदल चलती रही और मात्र 14
किलोमीटर दुर अपने घर पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दी। जब पढ़ा तब भी और लिख रही हुँ तब भी रोने को दिल कर रहा है और रो भी रही हुँ। बच्ची के माँ-बाप की हालत कल्पना से परे है। मन उदिघ्न सा हो गया है। अब तो इस तरह की खबर की हेडलाइन पढ़ने के बाद पुरी खबर पढ़ने का भी दिल नहीं करता।
कहाँ है शासक........।।।।
वायरस से तो बाद मे मरेगें पेट की आग और इस आग को बुझाने के इनके अथक प्रयास इन्हें समय से पहले ही मौत के मुँह मे लेके जा रहे हैं।
ये भुख बहुत बड़ी कमीनी चीज है ,
खतम ही नहीं होती कभी।
गरीब के पेट की भुख
कभी खतम नहीं होती।
अमीर की पैसे की भुख
कभी खतम नहीं होती।
शासक की सत्ता की भुख
कभी खतम नहीं होती।
समाज की बेबसी की भुख
कभी खतम नहीं होती
हमें सब देख कर-सुनकर
अनजान बनजाने की भुख
कभी खतम होती नहीं।
ये भुख बड़ी कमीनी चीज है।।
~ रश्मि
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