जीवन के पुराने पन्नों को खोले तो हम क्या देखते हैं । हमने सिर्फ भागादौड़ी की, निर्जीव वस्तुओं और बेकार के मनोरंजन के पीछे ।
झूठी शानोशौकत के लिये भौतिक वस्तुओं का जमावड़ा किया सिर्फ दिखाने के लिए ।
पर क्या फायदा उन वस्तुओं का जो आज ज्यादातर हमारे किसी काम के नहीं हैं ।
भौतिकतावादी दुनियां में हम इतने भागते रहे कि हमारे पास अपनों के लिए ही समय नहीं रहा...
माँ-बाप को बच्चों के लिए समय नहीं है, बच्चों के पास माँ- बाप के लिये समय नहीं है ।
पति - पत्नी को एक दूसरे के लिये वक्त नहीं ।
हम सिर्फ भागते रहे उन सब के पीछे जिसका कोई अंत नहीं ।
पर आज लॉकडाउन हमें मौका दे रहा है अपनों के लिये वक्त निकालने का । उन्हें समझने और जीवन की प्राथमिकता को तय करने का ।
शायद आज हमें प्रकृति का महत्व समझ आ रहा है । वातावरण स्वच्छ हो रहा है , पक्षियों का कलरव गूँज रहा है।
अब हमें सुर्योदय भी अच्छा लग रहा है और सुर्यास्त भी ।चंद्रमा और सितारे शीतलता और सुकून दे रहे होंगे, जो हमारी नजरों से आज तक औझल था । क्योंकि वक्त जो हमारे पास नही था।
प्रकृति को समझें और मानवता को भी क्योंकि भौतिकतावादी जीवन से इतर भी एक दुनियां भी है।
आज सूर्योदय भी हमारा है
आज सूर्यास्त भी हमारा है
आज चन्द्रमा भी हमारी खिड़की पे आता है
आज सितारे भी हमारे छत पे जगमगाते हैं
आज पक्षियों का संगीत कानों में घुलता है
हवाओं की सनसनाहट भी हमें छु के गुजरती है
क्योंकि लॉकडाउन में वक्त हमारा है ।
~रश्मि
3 Comments
अति सुन्दर और सीधे मन को स्पर्श करने वाली रचना
ReplyDeleteधन्यवाद
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