राम ऐसे आयेंगे ! (कविता)
किसी उत्सव के पीछे
कोई स्याह पक्ष होता है
यह कोई नहीं देखता
हजारों की मौत पर खड़ा है
धर्म का बाजार
यह कोई नहीं समझता...
किसी का अपना जला
किसी की दुकानें जली
कहीं दंगा
कहीं कत्लेंआम मचा
किसी का पुत गया
किसी का घर गया ....
शबरी के बेर खाने वाले
राम क्या ऐसे आयेंगे
तुम्हारे सोने के महल में
राम क्या ऐसे विजारेंगे...
हर घर में दिया जलाने वाले राम
अपने घर में निवास के लिए
मौत के दिए नहीं जलाते हैं...
राम तो कण - कण में हैं
हर पत्थर राममय है
हर सांस राम ही राम है
क्या मंदिर क्या मस्जिद....
तुम चाहे ढूंढो जग सारा
राम तो हर उस हृदय में बसे हैं
जहां सत्य है
जहां करुणा है
जहां ईमानदारी है
जहां धर्मनिष्ठा है ....
सवाल पूछना अपने हृदय से तुम
तुम कितने ईमानदार हो
अपने कर्तव्य के प्रति
अपने धर्म के प्रति
सबसे ज्यादा अपने प्रति
तब जपना राम-नाम की माला
और तब कहना जय सिया राम।
रश्मि~
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