समास का शाब्दिक अर्थ है - संक्षेप, छोटा आदि।
दो या दो से अधिक पदों के मेल से बनने वाले शब्द को समास कहते हैं।
अर्थात - कम शब्दों में अधिक अर्थ प्रगट करना समास का प्रमुख उद्देश्य है।
पंडित कामता प्रसाद गुरु के अनुसार -
" जब दो या अधिक शब्द अपने संबंधित शब्दों को छोड़कर एक साथ मिल जाते हैं तब उनके मेल को समास और उनके मिले हुए शब्दों को सामासिक शब्द कहते हैं। "
निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित शब्द दो या अधिक शब्दों के मेल से बने हैं और उनके बीच का संबंध शब्द लोप हो गए हैं
1. बालक में तीव्र बुद्धि है।
तीव्र बुद्धि = (जिसकी) बुद्धि तीव्र है।
2. मैं दाल चावल खाता हूं।
दाल-चावल = (और) दाल।
3. रेयांश घुड़दौड़ देखने जा रहा है।
घुड़दौड़ = घोड़ों (का) दौड़।
4. त्रिभूवन में राजा रहते हैं।
त्रिभूवन = (तीन भूवनों का समूह)।
5. तुलसीकृत रामायण में कितने दोहे हैं।
तुलसीकृत = तुलसी (से) कृत।
इन शब्दों के संबंध को प्रकट कर दिखाने की रीति को विग्रह कहते हैं।
जब दो या अधिक संस्कृत शब्द आपस में जोड़े जाते हैं तब उसमें अक्सर संधि के नियमों का पालन किया जाता है।
जैसे - राम + अवतार = रामावतार
पत्र + उत्तर = पत्रोत्तर
मनस + योग = मनोयोग
पित + अम्बर = पीताम्बर
किसी सामासिक शब्द में विभक्ति लगाने का प्रयोग किया जाता है तो उसे समास के अंतिम शब्द में जोड़ते हैं,
जैसे - मां-बाप से,
माता-पिता का
भाई-बहन का
राज-कुल से
( विभक्ति का अर्थ है विभक्त होने की क्रिया )
समास के 6 प्रकार हैं।
1. अव्यवीभाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. कर्मधारय समास
4. द्विगु समास
5. द्वंद समास
6. बहुव्रीहि समास
1. अव्यवीभाव समास
जिस समास का पहला शब्द ( पद ) प्रधान या मुख्य हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं।
उदाहरण देखें -
1. मैं (आजन्म ) तुम्हारा ऋणी रहूंगा।
2. मैं (प्रतिदिन ) विद्यालय जाता हूं।
3. श्याम (आजीवन ) परेशान रहा।
4. मैं (यथासंभव ) तुम्हारी मदद करूंगा।
ऊपर लिखे रेखांकित शब्दों में प्रत्येक का अर्थ पहले के अनुसार है और वह शब्द अव्यव है।
पूर्ण शब्द क्रिया - विशेषण के समान प्रयोग में होता है।
इस समास को अव्ययीभाव समास कहते हैं
यथा ( अनुसार )
आ ( तक )
प्रति ( प्रत्येक )
यावत् ( तक )
बि ( बिना )
से बने हुए संस्कृत शब्द अव्ययीभाव समास हिंदी में अक्सर आते हैं।
जैसे - यथासाध्य, - साध्य के अनुसार
यथाक्रम, - क्रम के अनुसार
यथाशक्ति, - शक्ति के अनुसार
आजन्म, - जन्म तक
आमरण, - मरण तक
प्रतिदिन, - दिन - दिन
यथासंभव, - संभव के अनुसार
यथाविधि, - विधि के अनुसार
हिंदी में संस्कृत पद्धति के हिंदी अव्यवीभाव बहुत कम पाए जाते हैं।
इसलिए जो हिंदी में जो शब्द प्रचलित है।
तीन प्रकार के होते हैं -
हिंदी में - निडर, निधड़क, भरपेट, अनजाने।
उर्दू फारसी या अरबी में - हररोज, बेशक, बखूबी, नाहक।
कई बार मिश्रित भाषाओं के शब्दों के मेल से बने हुए शब्द जैसे - हरघड़ी, हरदिन, बेकाम, बेखटके।
हिंदी में द्विरिक्त ( किसी शब्द या बात का दोहराया जाना , खराब या बुरा कथन, ( युक्ति ) दूर्वचन ) करके भी अव्यवीभाव समास बनते हैं।
जैसे घर-घर, पल-पल, हाथों-हाथ, कभी-कभी, एका-एक, मन-मन
द्विरुक्त शब्दों के बीच में 'ही' 'हो' या ' ए' आता है, जैसे -मन ही मन, घर ही घर
संज्ञाओं के समान अव्यवों की दूरिक्ति से भी हिंदी में अव्ययीभाव समास होता है।
जैसे - बीचों-बीच, धड़ा-धड़, पास-पास, धीरे-धीरे।
2. तत्पुरुष समास - तत्पुरुष समास में अंतिम शब्द या पद प्रमुख होता है
मां रसोई घर में है।
वह अकाल पीड़ित है।
वह राजपूत्र है।
श्याम जन्मांध है।
ऊपर लिखित वाक्य में जो सामासिक शब्द है उनमें प्रत्येक शब्द का दूसरा पद प्रधान या प्रमुख है।
प्रत्येक सामासिक शब्द के प्रथम पद के बाद विभक्ति का लोप हो गया है।
जैसे -
रसोई घर - रसोई का घर
अकाल पीड़ित - अकाल से पीड़ित
राजपुत्र - राजा का पुत्र
जन्मांध - जन्म से अंधा
इस प्रकार के समाज को तत्वपुरुष समास कहते हैं। तत्पुरुष समास में प्रायः संज्ञायें या विशेषण आते हैं।
तत्पुरुष समास के प्रथम शब्द में कर्ता और संबोधन कारकों को छोड़कर बचे जिन कारकों की विभक्तियों का लोप होता है, उन्हीं के अनुसार तत्पुरुष समास का नाम रखा जाता है।
उदाहरण देखिए -
1. कर्म-तत्पुरुष समास - कर्म-तत्पुरुष समास में 'को' विभक्ति का लोप हो गया है इसलिए यह कर्म-तत्पुरुष समास है ।
उदाहरण देखिए -
स्वर्ग-प्राप्त - स्वर्ग को प्राप्त
नरभक्षी - नर को मार कर खाने वाला
यश-प्राप्त - यश को प्राप्त करने वाला
राज-द्रोही - राजा को धोखा देने वाला
मांसाहारी - मांस को खाने वाला
शाकाहारी - शाक को खाने वाला
Continued....
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