उसकी मुस्कान (कविता)
कुछ भी उकेर देती हूँ
कभी रंगों से
कभी स्याही से...
कभी कोई नज्म
तो कभी कोई किस्सा
कभी बेवजह की बातें होती है
कभी वजह की बातें होती है...
जो लिख देती हूँ
कई बार यूँ ही...
कभी शब्दों को पकड़ के
कभी जज्बातों को पकड़ के
वो हँसता है
यूँ जोर-जोर से
मानों बच्चों की किलकारी
दौड़ रही हो आँगन में
तबतक - जबतक की
नयनों के कोर भींग ना जाये...
उसकी बच्चों सी मुस्कान
बारिश की बुँदे बन
मन को भींगों देती है...
पर सुनते-सुनते मेरी लिखी
कहे जाता है हर बार -
लोगों के सिर के उपर निकल जाता होगा :)
उटपटांग ही सही
लेकिन
मेरी नज्म - मेरी किस्सागोई
उसके होठों की मुस्कान बन जाती है...
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