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रिश्तों का हेर-फेर (कविता)

रिश्तों का हेर- फेर  ( कविता )



रिश्तों में चढ़ा देते हैं

जो झूठ की जिल्द

और कहते हैं

हमारे जैसा कोई पाक-साफ ना मिलेगा...

बुनियाद ही फरेब पे खड़ा कर देते हैं

और कहते हैं 

हमारे जैसा कोई ईमानदार ना मिलेगा...

हमसफ़र हो या सखा या रिश्ते-नाते

सबकी की यही फितरत है दोस्तों

कोई दिल से गले लगा लेता है

कोई दिल में राख़ लगा देता है

और कहते हैं

हम आपके ही हैं ....

अपने जब अपनों के नहीं हुऐ

तुम्हारे क्या होगें...

दोस्ती जब बाजार देख कर की जाये

तब दुश्मनों की जरुरत क्या है...

रिश्तों की तो बात मत पूछो

खायेंगे आपका गीत गुनगुनाएंगे किसी और का

और वक्त बेवक़्त आपकी ही बजा देंगे...

माना की होते ही हैं कुछ

जन्मजात अहसान फ़रामोश

पर तुम जो बांधो,आँखों पे काली पट्टी

तुम्हें पता भी ना चलेगा

तुम्हारी ही तिजोरी उड़ा ले जायेंगे...

ये जान लें हम

विक्षिप्तों की कमी नहीं है

इस जहाँ में

जिसे होना था हमारे घरों से बाहर

आज हमारे जड़ों में छुपे बैठे हैं

लोग तो ऐसे ही हैं

चाहे वो कभी

बन जाये अभिनेता

कभी बन जाये नेता....

घुन घुन घुन करके

हमें ही खा जाते हैं

और विकास की जिल्द देख 

हम खुश हो जाते हैं...



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