आदमियत का गोश्त (कविता )
आदमी तो होते हैं
सब एक जैसे
सबके तंत्र एक समान
सबकी रूह एक समान
फिर भी
कुछ गोश्त बन जाते हैं
कुछ जला दिए जाते हैं
कुछ काट दिए जाते हैं
सबकी अपनी-अपनी
काठ की हांडी है
जिसका जितना मन करे
पकाते रहते हैं...
राजा हो या संतरी
सबका खून एक समान कहां
कोई ओढ़े
राम का मुखौटा
तो कोई औढ़े
अल्लाह का मुखौटा....
जिनमें कोई आदमियत ही नहीं बची
उन सबको चाहिए गोश्त
आदमियों का.....
उन खास आदमियों का
जिसे हमने अलग बना दिया
जिसे ईश्वर ने बनाया एक समान
उन्होंने उन्हें बदल दिया
अपनी जरूरतों के अनुसार
गोश्त में....
2 Comments
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर🙏
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