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हर घर में होती है मंथरा (हिन्दी कविता )


घर -घर की बहुत सी कहानी है
बहुत सारे किरदार हैं 
उनमें से एक किरदार 
हर घर में होते हैं जरूर ...
एक स्त्री ऐसी 
जो मंथरा का किरदार निभाती है
चतुर -चालक - झूठी -व मतलबी 
शब्दों के हेर -फेर से
किस्सों की कहानी बदलना
उनके लिये कौन सी बड़ी बात है 
वो तो 
लोगों के किरदार ही बदल देती है
कब और कैसे
पता नहीं जैसे भी
हीरो को विलेन
विलेन को हीरो बना देती है...

हर घर में होती है
एक मंथरा जरूर
इसके लक्षण
होते हैं बड़े साधारण
या फिर असाधारण...
पहला लक्षण -
मीठी - मीठी बातें करने वाली 
बातों को ऐसे घुमाने वाली 
पूरब कब पश्चिम बन जाये
आपको आभास भी ना हो पाये 
ईश्वर का भी सर चकराये
पर बात अपनी सिद्ध कर माने
जैसे कोई सिद्धात्मा...

 दूसरा लक्षण -
तरह-तरह की कहानी
सुना 
पेट की बात मुँह से उगलवाये
फिर बातों को मोड़ - तौड़कर,
किस्सा बना दे 
किसी और फिल्म का,
और फिर
फिल्म को
प्रसारित कर आये...
भूल जाए
मगर
एक बात 
जरा !
ऊपर बैठा भोले भंडारी
देख रहा तुम्हारी हेरा फेरी
मंद -मंद मुस्कुरा कर सोचे
तुम्हारे फिल्म का भी नम्बर आयेगा 
उसका द-एन्ड तो मैं ही लिखूंगा..

पर 
तीसरा लक्षण
सबसे आम
खाने वाला
लंगड़ा आम नहीं,
पर सबसे खास
अपनी अनाम दुखी जींदगी
का रोना रोज
कुछ किस्सा कुछ फसाना
कितना दूध कितना पानी
भेद ना पाये
'आम' लोग
लंगड़ा या बंबईया 
कभी झिटे सहानभूति
कभी झिटे रुपया
या फिर झिटे
लोगों का सुख चैन





चौथा लक्षण
सबसे खास 
सब लोग माने उसे अपना
सबसे बड़ा शुभचिंतक
अपना दुख - सुख सुनाये उसे...
गर्व से हो ऊँचा उनका सीना
गीत सुनाये गली - गली
मेरे बिना
इस घर का
कोई काम ना हो पाये 
मैं ही हूँ
सबसे बड़ा कर्ता
यही पंचायत करे हर क्षण.. 
भूल जाये
मगर...
भूल जाये मगर
उनकी कोठी को भी 
काट रहा होगा कोई चूहा
मंद - मंद हँस रहा गणपति
तेरी यही दुर्दशा करे शनिपति...

अंततः
फिर भी 
हर घर में होती है
एक मंथरा जरूर..
पीढ़ी - दर - पीढ़ी
अपना उत्तराधिकार
व 
अपने जैसा किरदार
उपजा ही लेती है
और 
मेंडल के नियम चलते ही रहते हैं
हर घर में होती है
एक मंथरा....


~रश्मि





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