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अवसाद - नकारात्मक या सकारात्मक (लेख )

अवसाद - नकारात्मक या सकारात्मक  


अवसाद जहां हमें एक तरफ किसी व्यक्ति को नेगेटिविटी की ओर ले जाता है तो दूसरी और दूसरे व्यक्ति को पॉजिटिविटी की और भी ले जाता है फर्क बस नजरिये का है की अवसादग्रस्त अवस्था में हम आगे चलकर क्या चुनते हैं।

 अवसादग्रस्त होने पर निसंदेह हमें निराशा और जीवन अंधकार पूर्ण लगता है पर उस निराशा और अंधकार पूर्ण अवस्था में एक छोटी किरण हमारे भीतर मौजूद रहती है। जरूरत इस बात की होती है कि उस किरण को हम अनदेखा करें या फिर उस छोटी सी किरण का सहारा लेकर हम अंधेरे से उजाले की ओर बढ़े।

 अवसादग्रस्त अवस्था हमें कई बार अपनी उस प्रतिभा की ओर ले जाती है जिसे हमने अनदेखा किया या फिर देखा ही नहीं।
 हर व्यक्ति में कुछ ना कुछ ऐसी प्रतिभा होती है जो हमें अन्य व्यक्ति से अलग करती है। यह प्रतिभा या रचनात्मकता हमें कई बार परेशानियों भरे हालात में या फिर तनाव जैसी अवस्था में उभरकर आती है। ऐसी अवस्था में बस हमें चुनना होता है, सेलेक्ट करना होता है कि हम उस किरण के साथ चले या फिर और अंधकार में डुबते चले जाएं।

 अवसाद हमारे जीवन में सिर्फ निराशा ही नहीं देती है बल्कि आशा की ओर भी ले जाती है और व्यक्ति और ज्यादा काबिल इंसान बनकर उभर कर आता है या यूं कहें कि एक हुनरमंद इंसान बाहर निकल कर आता है।



 हम अपने आसपास जब देखना शुरू करेंगे तब हमें आसानी से दिख जाएगा कि कितनी परेशानियों से घिरे व्यक्ति, तनाव भरी अवस्था से घिरे व्यक्ति, अवसाद से घिरे व्यक्तियों ने अपने जीवन को नई नई चुनौती दी और एक नई ही डगर पर चल पड़े सफलता का कीर्तिमान स्थापित किया

 दशरथ  मांझी का नाम आपने सुना ही होगा उनका दूसरा नाम माउंटेन मैन है।
 दशरथ मांझी जिन्हें माउंटेन मैन के रूप में भी जाना जाता है। बिहार के गया जिला के करीब गहलौर गांव में दशरथ मांझी की माउंटेन मैन बनने की कहानी है। गहलौर गांव के अस्पताल काफी दूर थे। जिस वजह से दशरथ मांझी बीमार पत्नी को समय पर अस्पताल नहीं पहुंचा पाए। जिस कारण  उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई।
 पत्नी के जाने का गम तनाव और दुख से टूटे इस इंसान ने 22 साल की कड़ी मेहनत और जुनून से पहाड़ को भी हार मानने पर मजबूर कर दिया और 360 फुट लंबा 25 फुट गहरा और 30 फुट चौड़ा रास्ता बना दिया। जिसके कारण 80 किलोमीटर का रास्ता 13 किलोमीटर के रास्ते में तब्दील हो गया।
 दशरथ मांझी की कहानी सबके लिए प्रेरणादायक है यह सिर्फ प्रेम की कहानी नहीं है, बल्कि दुख और तनाव को अपने से परे कर कुछ कर गुजरने की कहानी है।
 मांझी की पत्नी की मृत्यु हो जाने पर भी निसंदेह  मांझी को बहुत दुख हुआ, तनाव हुआ, अवसाद ग्रस्त भी हुए होंगे लेकिन उस अवसाद ग्रस्त अवस्था में उस दुख की घड़ी में उसने एक छोटी सी किरण को ढूंढा और अपनी उस प्रतिभा को पहचाना जो दूसरे के लिए अकल्पनीय थी। और मांझी ने वह काम कर दिखाया जो नामुमकिन था। वो दूसरे के लिए प्रेरणादाई बने। यह तनाव या अवसाद की दूसरी अवस्था है सकारात्मकता की।

 कहते हैं आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है, किसी वस्तु या किसी भी चीज का अविष्कार क्यों करते हैं क्योंकि उस वस्तु या उस चीज की हमें आवश्यकता है। आवश्यक वस्तु के बिना हमें दुख होता है, हमें विभिन्न प्रकार की तकलीफों का सामना करना पड़ता है।  तकलीफें हमें तनाव देती है और यह दुख या तनाव को दूर करने के लिए हम आविष्कार करते हैं। यही तो है अवसाद या तनाव की सकारात्मकता।

 तनाव हमें मारता ही नहीं है बल्कि जीवन भी देता है। तनाव को अपॉर्चुनिटी के तौर पर भी देखा जाना चाहिए। यह हमें कुछ अलग हटकर करने का रास्ता भी दिखाता है। अवसाद या तनाव हमारे जीवन की गलतियों को विश्लेषण करने का मौका देता है। भागदौड़ भरी लाइफ से अवसाद ग्रस्त अवस्था हमें अपने आप से रूबरू कराने का मौका देती है। असल में हम हैं क्या  हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है।
 अवसाद ग्रस्त अवस्था वह अवस्था है जो हमें अपने आप से मिलाती है, बस हमें सुनना है अपनी अंतरात्मा की आवाज और एक नई डगर पर  आगे जाना है। अगर हम नहीं सुन पाते हैं अपनी ही अंतरात्मा की आवाज तो हम हार जाते हैं।
 घुटने टेक देते हैं अवसाद या तनाव जीत जाता है।
 अब हम पर निर्भर हैं कि हम अवसाद को जीतने दे या खुद को जीतने दे।

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