आज सुबह चाय बनाने गयी तो देखती हुं चायपत्ती का डब्बा खाली पड़ा था। अब चाय कैसे बनाऊं... उफ़ कैसे भुल गयी मैं, तुम थोड़ी ही बची थी कल शाम में ही। सामान लाने के चिठ्ठे में तुम्हारा नाम दर्ज कराना भुल गयी।
अब इतनी सुबह पति महोदय को बाजार जाने के लिये बोल भी नहीं सकती। पता है ना मेरी प्यारी चाय जिससे चाय की आदत ही ना हो वो क्या जाने...
अब ये मैं थोड़ी बोल रही हूं बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद। तुम्हैं तो पता ही है लंबा चौड़ा भाषण शुरू हो जायेगा पति महोदय का - याद नहीं रहता तुम्हैं कुछ, ध्यान कहां रहता है, कितनी बार कहा है - बादाम खाया करो, बादाम रखें रखें खराब हो जाता है पर खाया नहीं जाता।
अब बताओ प्यारी चाय इतनी बातें सुबह-सुबह सुनने से अच्छा तुम्हारे बिना ही रह लेती हुं। क्या होगा मन लुसपुसायेगा ही ना। आज ग्रीन टी से ही काम चला लेती हुं।
ओह प्रिय चाय ग्रीन टी पी के ऐसा लग रहा है जैसे कड़वी दवा मेरे गले के नीचे उतर रही हैं और तुम्हारा स्वाद तो ऐसा है कि मन ही नहीं भरता कभी। अब बताओ भला तुम्हारा भी कोई शानी है। कितनी भी प्रकार के पेय आ जाये पर मजाल है तुम्है कोई तुम्हारी सत्ता से हिला भी सके। अब तुम्हीं देखो दिन प्रतिदिन कितनी ताकतवर होती जा रही हो। कोरोना महामारी में सारे कोल्ड पेय पदार्थ की हवा निकल गई। और तुम जस की तस आसन जमाये बैठी हो।
फिर भी तुम्हारे बारे में गलत बोलने से लोग बाज नहीं आते। तुमपे विदेशी होने का ठप्पा कभी खत्म ही नहीं होने देते। माना कि अंग्रेज तुम्हैं भारत लाये थे। पर लोग ये नहीं देखते की अंग्रेज तो भारत छोड़ चले गये पर तुमने यहीं रहने का फैसला किया। तुम दार्जलिंग, कश्मीर, असम आदि की वादियों में जन्म लेने का फैसला किया , कितनों को बाजार दिया, रोजगार दिया....
जाने दो लोगों का काम है कहना हमें क्या लेना देना।
प्रिय चाय अब तो सर दर्द भी शुरू हो गया है... आंखो में नींद सा आ रहा है.. और पैरों में दर्द सा हो रहा है, थकावट महसूस हो रहा है
मेरे जीवन में तुम्हारी कितनी अहमियत है कोई और क्या जाने। अब क्या कहुं तुमसे... झुठ तो बोलने की आदत नहीं है मुझे, तुम्हैं तो पता ही है बचपन से लेकर आज तक तुम बिना गिला शिकवा के अभी तक साथ निभाती आ रही हो।
मेरी नानी को भी चाय बहुत प्रिय थी, तुम्हें तो याद है ना आधी रात को नींद खुल जाती थी तो मैं और नानी रसोई में चाय बनाने चले जाते थे बिना किसी तरह की आवाज किए। पर चोरी कितना भी छिपाओ छिपता नहीं है और छोटे वाले मामा जी को पता चल जाता था। और हमें मजबुरी वश तुम्हैं शेयर करना पड़ता था। ये सब दिन तो अब खो ही गये...
प्रिय चाय पहले तो तुम मुझे मीठी-मीठी ही अच्छी लगती थी। पर जब से मैंने पापा की पसंद की कड़क और कम चीनी की चाय जब से बनाना शुरू की तब से तुम कड़क और कम मीठी सी पसंद हो। पापा के साथ मैं भी दिन भर 6-7 कप चाय का सेवन कर ही लेती थी।
मानो या ना मानो तुम्हारी खुशबू तो बहुत दुर तक फ़ैल जाती है,तुम हो ही चीज ऐसी। खुशबू से याद आ रही है एक बात। नानी घर में तो चाय पीने की कोई दिक्कत नहीं थी, ना ही कोई मनाही। पर मम्मी के पास थोड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। छोटे होने का हवाला देकर चाय की कटौती की जाती थी। या युं कहूं की तुम्हैं पाने के लिए कितनी मिन्नतों से गुजरना पड़ता था। खासकर दोपहर के समय में...
चाय अगर मैं बनाऊं तो एक कप चाय पीने की इजाजत होती थी। पर इस स्वाद में भी डाका पड़ जाता था। जैसे ही चाय छन्ने से गुजर कर कप तक पहुंचती कि बाहर से गेट खटखटाने की आवाज आती। दरअसल मेरा भाई स्कुल के लंच टाइम में खाना खाने घर आता था तो चाय की खुशबू वो दुर से ही सुंघ लेता था और बाहर से ही कहता कुछ सुगंध आ रही है। भाई को भी छोटा होने के कारण चाय बेमुश्किल से मिलती थी तो उसे भी चाय चाहिए होता था। अब हमलोग चाय छुपाने के उपक्रम
में लग जाते। पर प्रिय चाय तुम्हैं तो छुपा देती थी पर तुम्हारी खुशबू छुप नहीं पाती और भाई को पता चल ही जाता। फिर तुम्हारा बंटवारा होता था बराबर हिस्सों में तब कहीं जाकर तुम्हारे स्वाद का रसपान होता।
वैसे हमारे घर में तुम्हारी कद्र तो बहुत है। तुम्हारे सामने तो सारे पकवान फेल हो जाते हैं। सुबह शाम दोपहर तुम्हारी ही जय-जयकार होती है। हो भी क्युं नहीं तुम्हारे बिना तो नींद नहीं खुलती, हमारे घर में किसी की भी। अब तुम ही बताओ पर्व-त्यौहार में जब भी सभी गांव जाते थे तो किसकी पुछ ज्यादा होती थी, तुम्हारी ही ना....
गांव में चाय के कप कम पड़ जाते थे पर तुम्हैं पीने वालों की कभी कमी नहीं होती थी। इसलिए तो जबतक गांव में रहना होता था, पियो फेंको कप ही चलता था। मेरी प्यारी चाय गांव में कोई तुम्हैं प्रेम से बनाने वाला होता था तो वो थी हमारी बहन। वैसे बहनों की कमी नहीं थी पर हर कोई अच्छी चाय तो बना नहीं सकता ना। चाय बनाने के दौरान बिना किसी डर के आधा से अधिक दुध एक बार के चाय में डाला जाये तो निसंदेह तुम तो बेहतरीन बनके आओगी ही ना।
तो हमारे घर के सारे प्राणी की नजर उसी बहन पे बारंबार टिकी रहती थी। कब वो चाय बनाने जाये और चाय रूपी अमृत का प्याला सबको मिले।
उस छोटी सी निरीह सी बहन को तरह तरह का प्रलोभन देकर या फिर खुशामद करा कर या यूं कहे कि बहला फुसलाकर चाय बनवाया जाता रहा। पता नहीं कितनी बार वो भी बिना किसी परेशानी के चाय पे चाय बनाती रही। चाय बांटने के दौरान अगर किसी की चाय कम पड़ जाये तो ऐसा लगता था कि वो बंदा उसे गोतिया भरी नजरों से देख रहा या देख रही हो। बेचारी घबड़ा कर बोल उठती थी आपके लिये भी बना रहे हैं।
प्यारी चाय तुम सबकी इतनी प्यारी हो कि वहां भी तुम्है आधी रात को बनाने का कार्यक्रम चलता ही रहता था।
एक हफ्ते में ही किलोभर चाय खत्म ना हो तो तुम्हारी क्या इज्जत...
प्रिय चाय तुमसे बात करते करते बहुत समय गुजर गया पर शाम अब तक ढ़ली नहीं। पता नहीं कब शाम होगी और पतिरूपी प्राणी बाजार को निकलेंगे और तुम हमारे घर वापस आओगी। फिर एक कप चाय के दर्शन होंगे...
जो चाय पीते ही नहीं वो क्या जाने एक कप चाय की कीमत क्या है।
वैसे प्रिय चाय तुम भी कम नहीं हो जगह जगह दिखती रहती हो जैसे रात में टीवी सीरियल में दिख जाती हो तो मेरा मन ललचा पड़ता है और तुम्हें बना लाती हुं। किताब पढ़ते समय किसी वर्णन में तुम्हारा जिक्र हो जाता है तो तुम्हें बना लाती हूं। मोबाइल पे बेव सीरीज देख रही होती हुं तो भी तुम्हैं बना लाती हूं। अब हर जगह तुम ही तुम रहोगी तो कैसे मैं तुम्हारे बिना एक पल भी रह पाऊंगी।
प्रिय चाय आखिर पतिदेव बाजार से चायपत्ती ले ही आये। मुझे अनमना सा देख पुछ ही बैठे और रोंआसी सी मैं बोल ही पड़ी - चायपत्ती खत्म हो गयी थी, सुबह से चाय नहीं पी। पतिदेव हंसते हुए बोले अच्छा ये बात है मुझे तो लगा कोप भवन में आज तुम विराजमान हुई हो। ठहाका मारते हुये वो बाजार जा कर तुम्हैं ले ही आये। मेरी थोड़ी किरकिरी हो गयी पर तुम्हारे लिये सब जुर्मो सितम कबुल है।
क्रमशः
2 Comments
Gajab... lekin chai peene ki umar nahi hui hai aapki hahahahaha
ReplyDeleteधन्यवाद, चाय पीने की कोई उम्र नहीं होती ना समय
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