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जंगल की कहानियां (Part 2)

दुसरे दिन सुबह जब लेजर और रेजर सो कर उठे तो बाघिन ने कहा - चलो बच्चों जल्दी से ब्रश कर के और ब्रेकफास्ट कर लो हमसब को तैयार होना है।
रेजर- माँ हम जल्दी से तैयार हो जाते हैं हमें स्कूल के लिए निकलना है।
बाघिन - नहीं बच्चों आज तो संडे है आज छुट्टी का दिन है।
लेजर- ओह माँ आज तो उस स्कूल के बदमाश बच्चे को सबक सिखाना था। पर कोई बात नहीं आज हम घूमने जायेंगे, क्युं भाई
रेजर- हाँ लेजर
बाघिन गुस्से से- क्या कहा तुमने...
लेजर डरते हुए - कुछ नहीं माँ हमलोग तो ऐसे ही मजाक कर रहे हैं...

बाघिन और बच्चे घूमने के लिये निकल पड़े...        घुमते -घुमते वो सब एक पहाड़ के पास पहुंच गये।
रेजर- माँ हम कहाँ आ गये।
बाघिन- इसे पहाड़ कहते हैं मेरे प्यारे बच्चे
लेजर- माँ इतना बड़ा पहाड़ कैसे बन जाता है?
बाघिन- प्यारे बेटे जब ज्वालामुखी से लावा निकलता है तो पहाड़ बन जाते हैं, और नदियों के पत्थर भी जब एक जगह जमा होते हैं तो पहाड़ बन जाते हैं।

लेजर- माँ पहाड़ पर भी हमारे जैसे जानवर रहते हैं क्या?
बाघिन- वहां छोटे-छोटे जीव -जंतु रहते हैं और जड़ी-बुटी
भी पायी जाती है। जिससे दवाई बनायी जाती है। 

रेजर- माँ जड़ी- बुटी उसी को कहते हैं क्या जिसे बजरंगबली लक्षमण जी के लिये लाये थे..

बाघिन- हाँ मेरे प्यारे बेटे तुमने सही कहा...
जंगल -पहाड़ -पानी हम सबको जीवन देता है इसलिये हमें इसकी रक्षा करनी चाहिये।
अगर पेड़ नहीं होगें तो पहाड़ भी नहीं होगा, और पानी भी नहीं होगा। और जंगल भी नहीं होगा तो हमलोगों का घर भी नहीं होगा। समझे प्यारे बच्चों....
लेजर-  माँ तुम बहुत अच्छी बात बताती हो..

बाघिन- देखो बच्चों तुम्हारे पापा भी आ गये।
बाघ को देखकर रेजर-लेजर खुशी से नाचने लगे।
रेजर- पापा आप हमारे लिये क्या लेके आये हो हमें भुख लगी है..
बाघ- देखो बच्चों मैं तुम्हारे लिए बहुत बड़ा शिकार लेके आया हुँ, इसे खा लो और अपनी माँ को भी बोलो खायेगी...
सभी ने स्वादिष्ट मांस को भरपेट खाकर अपनी भुख मिटायी।
रेजर-लेजर- ओह पापा बहुत यमी भोजन था, मजा आ गया खाकर.. थैंक्यू पापा।


फिर बाघ- बाघिन पहाड़ की सैर करने लगे और घुमते-घुमते बहुत दुर निकल आये तभी उन्होंने देखा एक गुरिल्ला जमीन पे उदास सोया हुआ है।
रेजर-  गुरिल्ला भाई क्या बात है बहुत उदास नजर आ रहे हो।
गुरिल्ला जोर- जोर से रोने लगा.... हुहुहुहुउउउंऊंऊं..
लेजर- क्या गुरिल्ला भाई छोटे बच्चों की तरह क्यों रो रहे हो

बाघ-बाघिन ने भी  दहाड़ते हुये पुछा क्या हुआ तुम्हें?
गुरिल्ला बोला  देखो हमारे पहाड़ के आस-पास के पेड़ों को मनुष्य नामक दानव ने काट दिये... हमारे घरों को नष्ट कर दिया, अब हम क्या करेंगे ?

रेजर लेजर ने चारों तरफ नजर घुमायी पहाड़ के पास के चारों तरफ के पेड़ कटे पड़े थे। गुस्से से रेजर दहाड़ उठा और बोला- मैं मानवरुपी दानव को नहीं छोड़ूंगा उसने हमारे घर को नुकसान पहुंचाया है। 
लेजर भी गुस्से से लाल हो गया और इधरउधर दोड़ते हुये दहाड़ने लगा।
बाघिन- शांत हो जाओ बच्चों युँ उतावले नहीं होते, हमें सोचसमझकर कर फैसला लेना होगा।

 बाघ भी दहाड़ते हुये बोला- हाँ हमें समझदारी से काम लेना होगा, हम मानव की तरह तो है नहीं की अपनी धरती को स्वयं नुकसान पहुँँचाये।

गुरिल्ला- हाँ हमें जंगलवासियों के साथ एक मीटिंग रखते हैं और आये दिन होने वाली इस समस्या का समाधान ढुंढते हैं।

बाघिन- हाँ पर अभी रात होने वाली है हमलोगों को अब अपने-अपने घर जाना चाहिए....
फिर सब अपने-अपने घर की ओर चल पड़े..।
रास्ते भर लेजर - रेजर उदास से ही रहे..
घर पहुंचे कर बाघिन ने बच्चों को हाथ- मुँह साफ करा कर खरगोश का सुप बना कर बच्चों को पिलाया।
बाघिन- रेजर - लेजर प्लीज तुमदोनों दुखी मत हो, सब ठीक हो जायेगा अब सो जाओ।

लेजर - रेजर रातभर मनुष्य को कैसे मजा चखाया जा सके उसके उपाय के बारे में बात करते रहे और सुबह होने का इंतजार करते-करते गहरी नींद में सो गये..।
(क्रमशः)
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~रश्मि



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