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मदर पार्ट 1


आज मदर्स डे है।  ये मदर्स डे, फादर डे या ब्रदर डे इत्यादि मुझे ज्यादा समझ नहीं आते ये सब तो पश्चिमी सभ्यता की बातें हैं। हम भारतीयों के लिये हर दिन फादर डे - मदर डे होते हैं। फिर भी आज जब फेसबुक के माध्यम से मुझे पता चला आज मदर डे है तो बचपन की याद आ ही गई।

मेरी तीन माँ है और मैं खुद को भाग्यशाली मानती हुँ कि मुझे तीन माँओं का प्यार मिला और मिल भी रहा है। मेरा जन्म नानी घर मे हुआ ओर जब मैं नौ महीने की थी तब मम्मी मुझे नानी के पास छोड़ ससुराल चली गयी थी तो तब से  ले कर बड़े होने तक मेरा लालन - पालन नानी और मेरी प्यारी मासी ने किया। वैसे मम्मी आती जाती रहती थी पर बचपन के शूरूआती समय याद करूँ तो नानी और मासी के साथ ही यादें जुड़ी हैं।

मैं नानी की एकलौती नातिन हुँ तो जाहिर है मुझे नाना - नानी, मामा - मामी और मासी से बहुत प्यार मिला। मैं नानी की जान हुआ करती थी और नानी मेरी जान। पहला अक्षर लिखना मुझे नानी ने ही सिखाया। याद है नानी आंगन मे खाना बनाते हुये पढ़ाया करती थी। नानाजी मेरे डिप्टी क्लेक्टर होते हुये भी समय निकाल कर हम भाई बहन को अंग्रेजी और संस्कृत पढ़ाया करते थे।

नानी बताती थी जब मैं एक साल की थी तब से वो मुझे गोद में लेकर स्कूल जाया करती थी। नानी शिक्षिका  थी और घर में कौई रहता नहीं था,सब अपने -अपने काम पे जाया करते थे।

मैं नानी के साथ ही एक थाली में खाती थी और साथ ही सोती भी थी। जहाँ नानी जहाँ जाती मुझे ले के ही जाती थी। घुमना - फिरना नानी के साथ, बस नानी होनी चाहिए। एक बार पापा अपने पास ले गये थे एक हफ्ते के लिये, वहां मेरा जरा भी दिल लग नहीं रहा था और नानी का भी यही हाल था और वो रो भी रही थी। आखिर में नानी छोटे वाले मामा के साथ  मुझे लेने आ गई। हमलोग  का प्यार ही ऐसा था। माँ से भी बढ़कर बहुत ज्यादा जिसके लिये लफ्ज कम पड़ जाये।

जब भी मैं नानी के साथ कपड़े लेने जाती तो मुझे हमेशा मंहगे कपड़े ही पसंद आते थे उस समय भी हजार - पंद्रह  सौ से कम के कपड़े पसंद आते ही नहीं थे। तो नानी कहती थी इतना मंहगा कपड़ा.... इतने मेंं तो एक जेवर हो जायेगा और मुझे रेडिमेड कपड़ों के दुकान से खींचकर सुनार के यहाँ ले जाती थी और इयररिंग्स खरीद देती थी और कहती थी देखो दो हजार के अंदर सोने का इयररिंग्स हो गया। कपड़े पे इतना पैसे बरबाद करना गलत बात है। और यह सब सुना कर  फिर कपड़े भी दिला देती थी...  आज तक मेरे लिये किसी और ने ऐसा नहीं किया। तो ऐसी है मेरी नानी......

बचत करने की आदत और फिजुलखर्ची ना करने  की आदत मुझे नानी से ही मिली है। जब भी घर में कौई गेस्ट आते या फिर पापा जब भी हम सबसे मिलने आते तो पैसै दिया करती थे और जैसे सब चले जाते तो नानी वो पैसे हमसे ले कर एक डब्बे मे डाल देती थी और जब डब्बा भर जाये तो और पैसे मिला कर मेरे नाम से  बैंक में जमा कर देती थी और बाद में फिक्स डिपोजिट कर देती थी.. बचपन की यह प्रक्रिया अभी तक चल रही है। सच मे नानी जैसी कौई नहीं। 

नानी की अलमारी को कौई छु नहीं सकता था ना खोलने की इजाजत थी। चाहे वो नानाजी हों या मामा या मासी या फिर मम्मी। सिर्फ नानी मुझे अपनी अलमारी खोलने देती थी। मैं उनके सारे समान और पैसे को देख सकती थी और छु सकती थी। नानी कहीं अगर जाती तो अलमारी की चाबी मुझे देकर जाती थी, इतना प्यार करती थी। घर में सबसे ज्यादा प्यार मुझसे ही करती थी अपने बच्चों से भी कहीं ज्यादा। ये शायद पीढ़ी दर पीढ़ी चलता जाता है मेरी मम्मी मुझसे ज्यादा अपने नाती से प्यार करती है।

जब पापा मुझे अपने पास हमेशा के लिये ले आये तो मन बिल्कुल भी नहीं लगता था नानी के बिना
मैं छुप -छुप कर बहुत रोती थी जैसे एक बच्चे से उसकी माँ दुर हो जाती है। वैसे हर एक दो महीने में नानी के पास जाती ही थी फिर एक महीने रह कर ही वापस आती थी। जब भी छोटे वाले मामा वापस पापा के पास दे आते थे और जब मामा वापस जाते थे तो मैं खिड़की से  बहुत दुखी होकर मामा को तबतक देखती रहती थी जबतक आँखों से औझल नहीं हो जाते। सोचती काश कौई जादु हो और मैं नानी से मिलकर आ जाऊँ।पर ऐसा होता नहीं था लेकिन कल्पना की उड़ान चलती रहती थी। इसलिए कभी भी बच्चों को माँ से अलग नहीं करना चाहिए चाहे वो नानी माँ हो या मासी माँ हो या माँ हो । मेरी नानी जैसी नानी मिलना सच में भाग्य की बात होती है। आप मेरे लिये सबसे प्यारी माँ हो, आप हमेशा स्वस्थ रहें खुश रहे और आपकी बहुत लंबी उम्र हो।

कहानी किस्से तो खतम नहीं होते कभी भी तो मदर पार्ट 2 मासी माँ और  मदर पार्ट 3 माँ अगली बार के पोस्ट में। क्रमशः

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