चूड़ियां (कविता)
मां के हाथों में
रंग बिरंगी चूड़ियां
स्मृति पटल पर उगते हैं
नन्हे-नन्हे
टिमटिमाते तारे
कभी उसने यूं ही कहा था -
तुम्हारे लिए चूड़ियां
पर लाया था
मां के लिए चूड़ियां
सपने झिलमिलाये
और टूट भी गए
पर जब भी गुजरी
चूड़ियों के बाजार में
जब भी खनकी
किन्ही हाथों में चूड़ियां
तो दिल में
गूंजती रही -
तुम्हारे लिए चूड़ियां
तुम्हारे लिए चूड़ियां.....
Rashmi Ratn
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