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प्रेम (कविता )

प्रेम कविता )



प्रेम यूँ तो खत्म नहीं होता...
प्रेम खत्म तब भी नहीं होता
जब खाने को नहीं हो
कोई आसरा कोई ठिकाना नहीं हो
प्रेम तब भी खत्म नहीं होता
जेवर -जेवरात ना हो
ना ही हो ऐश आराम की सुविधा हो 
प्रेम तब भी खत्म नहीं होता
जब कुछ भी ना हो....

प्रेम तब खत्म हो जाता
जब सब कुछ हो कर भी
रिश्ते में पारदर्शिता ना हो
झूठ की पोटली
फेरब की दुकान 
ज्यों - ज्यों खुलती जाती है
त्यों-त्यों प्रेम भी
भाप बन उड़ता जाता है....

रह जाती है कुछ बुँदे
आँखों के कोर में
या बादलों की चादर में
कभी-कभी 
बरसती है यूँ
फिर
एक आह !
एक सिसकी 
कुछ यादें
अच्छे पलों की
फिर सब विलिन.... 

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