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उदास इश्क - 2

उदास इश्क (कविता)





 एक उदास इश्क
 रोज मेरे सपने
 से गुजरती है
 कभी सीढ़ीयों
 कभी खिड़कियों
 के पास ठहरती है
 मेरी मूक अल्फाज
 कुछ कहने की कोशिश में
 अधूरी ही रह जाती है
 बात उस तलक
 पहुंच कर भी
 बारिश में बह जाती है
 इश्क की सोंधी खुशबू
 मगर सांसो में घुल जाती है
 यूं मिलना और गुजर जाना
 मंजिल का होना या ना होना
 सरेआम हो जाती है
 जब मैं कहूं  -
 तुम हो नहीं कहीं...
 रोज मेरे सपने से गुजरती है....


~रश्मि 

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